आजादी के बाद हिन्दूस्तान का आम आदमी शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार, न्याय, उर्जा के साधन, पानी, आवास एवं पर्यावरण जैसे मुद्दो पर हासिये से वंचित है। राजसता भारत में कार्पोरेट घरानो के हाथ में हे। देश के राजनैतिक दल, संसद, न्यायपालिका, पुलिस यहा तक कि मिलिट्री भी जाने अनजाने में कार्पोरेट घरानो के पक्ष में ही कार्य कर रही है। इसी स्थिति में कार्पोरेट घराने अपने पैसो के दम पर सरकारो को एवं राजनैतिक दलो को अपने पक्ष मे नीतिया बनाने में बाध्य करते है। वोट आम आदमी देता है परन्तु निर्वाचित होन के बाद उनके प्रतिनिधि उनके सेवक न होकर मालिक बन बेठते है। ऐसे में वो जिनसे चंदा, रिश्वत, दलाली लेते है उसी के पक्ष में खडे हो जाते है। अब तो सार्वजनिक जीवन में निर्लज्जमा चरम सीमा पर है। सार्वजनिक जीवन में जीवन मूल्य समाप्त से हो गये है। धार्मिक नेताओं से भी व्यक्तियों मे नैतिक मूल्य नहीं जिंदा हे। ऐसे में नागरिको में या आम आदमी में ये आम चर्चा है कि सार्वजनिक जीवन में कर्म की दार्शनिकता का महत्व समाप्त हो रहा है अर्थात जो हाड-तोड मेहनत करेगा वो तो यू ही भूखा ही मरेगा परन्तु जो लोगो के शोषण से पैसो का पहाड़ इकटठा करेगा वो ही दूनिया के एशो-आराम का भोगी होगा। इस नियति ने आम आदमी में भी ऐसो-आराम के प्रति एक ललक पेदा की है यही बाजारवाद का एक दुर्गुण है। इसी व्यवस्था ने आम आदमी तक को पथ भ्रष्ट करने का काम किया हैं। आज समाज में हिंसा, नशा एवं अश्लिलता तेजी से बढ रही है इसके पीछे पूंजीवादी व्यवस्था का सोचा समझा षडयंत्र है। जब तक आम आदमी इन तीन गुणो से मुक्त नहीं होगा तब तक आम आदमी को भी न्याय प्राप्त नही ंहोगा। केवल पार्टी बना देने से ही आम आदमी को न्याय नहीं मिल जायेगा इसके लिये नीतिया, नियत एवं निष्ठावान नेताओं की भी जरूरत पड़ेगी। 2013 से ही हमें न्यायपूर्ण समाज की रचना के लिये निरन्तर संघर्ष करना होगा। हमे धेर्य, विवेक और ज्ञान से लेस होकर नई समाज की रचना के लिये लड़ाई मे शामिल होना होगा। यही 2013 के लिये सही रास्ता हो सकता है।
मंगलवार, 1 जनवरी 2013
आम आदमी है हासिये पर मुख्य धारा में शामिल होने की लड़ाई जारी है- व्यास
आजादी के बाद हिन्दूस्तान का आम आदमी शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार, न्याय, उर्जा के साधन, पानी, आवास एवं पर्यावरण जैसे मुद्दो पर हासिये से वंचित है। राजसता भारत में कार्पोरेट घरानो के हाथ में हे। देश के राजनैतिक दल, संसद, न्यायपालिका, पुलिस यहा तक कि मिलिट्री भी जाने अनजाने में कार्पोरेट घरानो के पक्ष में ही कार्य कर रही है। इसी स्थिति में कार्पोरेट घराने अपने पैसो के दम पर सरकारो को एवं राजनैतिक दलो को अपने पक्ष मे नीतिया बनाने में बाध्य करते है। वोट आम आदमी देता है परन्तु निर्वाचित होन के बाद उनके प्रतिनिधि उनके सेवक न होकर मालिक बन बेठते है। ऐसे में वो जिनसे चंदा, रिश्वत, दलाली लेते है उसी के पक्ष में खडे हो जाते है। अब तो सार्वजनिक जीवन में निर्लज्जमा चरम सीमा पर है। सार्वजनिक जीवन में जीवन मूल्य समाप्त से हो गये है। धार्मिक नेताओं से भी व्यक्तियों मे नैतिक मूल्य नहीं जिंदा हे। ऐसे में नागरिको में या आम आदमी में ये आम चर्चा है कि सार्वजनिक जीवन में कर्म की दार्शनिकता का महत्व समाप्त हो रहा है अर्थात जो हाड-तोड मेहनत करेगा वो तो यू ही भूखा ही मरेगा परन्तु जो लोगो के शोषण से पैसो का पहाड़ इकटठा करेगा वो ही दूनिया के एशो-आराम का भोगी होगा। इस नियति ने आम आदमी में भी ऐसो-आराम के प्रति एक ललक पेदा की है यही बाजारवाद का एक दुर्गुण है। इसी व्यवस्था ने आम आदमी तक को पथ भ्रष्ट करने का काम किया हैं। आज समाज में हिंसा, नशा एवं अश्लिलता तेजी से बढ रही है इसके पीछे पूंजीवादी व्यवस्था का सोचा समझा षडयंत्र है। जब तक आम आदमी इन तीन गुणो से मुक्त नहीं होगा तब तक आम आदमी को भी न्याय प्राप्त नही ंहोगा। केवल पार्टी बना देने से ही आम आदमी को न्याय नहीं मिल जायेगा इसके लिये नीतिया, नियत एवं निष्ठावान नेताओं की भी जरूरत पड़ेगी। 2013 से ही हमें न्यायपूर्ण समाज की रचना के लिये निरन्तर संघर्ष करना होगा। हमे धेर्य, विवेक और ज्ञान से लेस होकर नई समाज की रचना के लिये लड़ाई मे शामिल होना होगा। यही 2013 के लिये सही रास्ता हो सकता है।
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