गुरुवार, 14 मार्च 2013

दुनिया के उपभोक्ता एक हो - भूख, भय व भ्रष्टाचार के खिलाफ - व्यास


     15 मार्च को पूरी दूनिया में उपभोक्ता दिवस मनाया जाता है। इसका मतलब यह है कि दुनिया का उपभोक्ता आज भी अपने मूलभूत अधिकारों से वंचित है। मसलन जानने का अधिकार है। आज भी उपभोक्ता जिन वस्तु एवं सेवाओं का इस्तेमाल करता है परंतु खरीदने से पहले उसको खरीदी जाने वाली वस्तु और सेवाओं के बारे में पर्याप्त एवं सही सुलभ जानकारी उपभोक्ता की भाषा में नहीं होती जिसके कारण उपभोक्ता को वस्तु एवं सेवाओं से न केवल ठगी का शिकार होना पड़ता है साथ ही उसे गुणवता हीन एवं स्तरहीन एवं नुकसान दायक वस्तुओं और सेवाओं से ही काम चलाना पड़ता है। आज भी भारत के अंदर उपभोक्ता को वस्तु एवं सेवाओं के लागत मूल्य जानने का अधिकार प्राप्त नहीं हुआ है केवल अधिकतम खुदरा मूल्य छपवाकर सरकारे अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेती हे पर वास्तविकता की हम छानबीन करे तो हम पायेगे की इसके पिछे भी बहुत बडे घोटाले छीपे हुए है जो उपभोक्ताओ को जानबुझकर लागत मूल्य जानने का अधिकार नही दिला रहे हे क्योकि उद्योग, वाणिज्य व सेवा क्षेत्र कभी नहीं चाहेगा कि उसके उपभोक्ता को उसकी वस्तु ओर सेवाओं का लागत मूल्य पता चल जाए। ऐसी स्थिति में उपभोक्ता को लागत मूल्य जानने का अधिकार बहाल नहीं हो जाता तब तक सरकारो द्वारा उपभोक्ता संरक्षण व सुरक्षा की बाते करना केवल उपभोक्ताओं को धोखें मे डालने वाली बात है।
    खाद्य अपमिश्रण कानून, ओषधि नियंत्रण कानून, आवश्यक वस्तु अधिनियम, पैकेज एक्ट एवं उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अलावा भी सेकडो कानून ऐसे हे जो उपभोक्ताओ को त्वरित, सुलभ एवं सस्ता न्याय देने की बात करते हे परंतु आज भी उपभोक्ता जिला मंचो से लेकर सुर्पीम कोर्ट तक जीतने के बावजूद भी अपने आप को हारा हुआ ही महसूस करता है और हारा हुआ उपभोक्ता तो खुद ही अपने आप को गोर निराशा के खडे में गिरा हुआ महसूस करता है। सरकारो ने कथाकथित जिला मंच एवं जिला उपभोक्ता संरक्षण परिषदो का राजनीतिकरण किया है जिसके परिणाम स्वरूप उपभोक्ताओ को न ही प्रशासनिक स्तर और न ही न्यायिक स्तर पर सही न्याय मिल पा रहा है। केवल कानून बना देने से उपभोक्ता को न्याय नही मिलेगा इसके लिये सरकारो, न्यायपालिका, मीडिया, उपभोक्ता जन संगठनो को संवेदनशील एवं सतर्क रहते हुए उपभोक्ताओं के हको को लागू कराने के लिए काम करना होगा। आज अंबेडकर जी की वह पंक्तियां याद आती है - शिक्षित बनो, संगठित रहो एवं संधर्ष करो। उपभोक्ता यदि इन पंक्तियों का आचरण का हिस्सा बना ले तो शायद सात अरब उपभोक्ताओ के जीवन में नयी क्रांति हो सकती । न ही तो यू ही हर 15 मार्च को हम अन्तर्राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस मनाते रहेंगे।