शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

देश की विधायिका क्या अपराधियों से मुक्त होने के लिए तैयार है ?-व्यास

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भारत सरकार आज देश की संसद में बैठे 162 दागी व्यक्तियों एवं देश की विभिन्न विधानसभाओं में बैठे 3000 हजार से ज्यादा दागी विधायिकों को ऐन-केन प्रकारेण चुनाव लड़ने के अधिकारों से वंचित नहीं करना चाहती है। सरकार ने आनन-फानन में अध्यादेश का मसोदा तैयार किया और केबिनेट से स्वीकृति हेतु पे्रषित किया परन्तु देश के विवेकशील, निःष्पक्ष एवं प्रतिभावान राष्ट्रपति महोदय से सरकार से जानना चाहा कि ‘‘वह क्यूं जल्दबाजी में जरिया अध्यादेश अपराधियों को बचाने पर आमदा है। क्यों कि देश के उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में स्पष्ट उल्लेख किया कि जिस जन प्रतिनिधि को किसी भी अदालत में 2 वर्ष से ज्यादा कारावास की सजा सुना दी है, वह व्यक्ति तत्काल प्रभाव से चुनाव लड़ने के लिये अयोग्य हो जायेगा और अपील कर देने के बाद भी उसको अयोग्यता से नहीं बताया जा सकेगा। देश की संसद में बैठे कुछ लोग किसी भी कीमत पर विधायिका को शायद अपराध मुक्त नहीं देखना चाहते है। भारत सरकार भी इस कृत्य के लिए कोई कम जिम्मेदार नहीं है। आज ही उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में राईट टू रिजेक्ट को मतदाता का महत्वपूर्ण अधिकार के रूप में मान्यता दी है। परन्तु देश के राजनैतिक दल, नेता किसी भी कीमत पर चुनाव सुधारों को लागु करने के प्रति ईमानदार नहीं है। देश की आम जनता हो ही तय करना है कि वे राईट टू रिजेक्ट जैसे ब्रह्यास्त्र का इस्तेमाल करते हुए अपराधी उम्मीदवारों को बहुमत से रिजेक्ट करें। मेरी मान्यता यह है कि 16.33 प्रतिशत वेध मतों का यदि राईट टू रिजेक्ट के पक्ष में वोट पड़ते है तो राईट टू रिजेक्ट जैसे मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए आवश्यका होने पर जनमत संग्रह भी करना चाहिए। आज पुरी दुनिया में पूंजीवादी, निरंकुश अर्थव्यवस्था ने दुनिया के आम आदमी का जीवन को नरक बना दिया है। आज व्यक्ति व्यक्तिवादी हो गया है जो केवल अपने हितों को ही सुरक्षित करने पर आमदा है। केवल व्यवस्था परिवर्तन से ही सामाजिक हितों की सुरक्षा संभव है। आज सामाजिक हितों की सुरक्षा की बात करना नितांत मूर्खतापूर्ण कार्य माना जाता है। वर्तमान में कर्म की दार्शनिकता का महत्व समाप्त होता जा रहा है। ऐसे में निष्काम कर्म की बात करना तो निश्चित रूप से फिजुल ही लगता है। सर्वहारा अधिनायकवाद ही लोगों के जीवन में कुछ जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति की गारंटी देता है। मेरी मान्यता है कि दुनिया में आवश्यकताएं सभी की पूरी होनी चाहिए परन्तु विलासिता किसी की भी पूरी नहीं होनी चाहिए। तभी दुनिया में सामाजिक न्याय का सपना साकार हो सकेगा। सामाजिक चेतना से ही सामाजिक नैतृत्व का उभार होता है। ऐसा उभार ही सामाजिक क्रांति को साकार करेगा।