शुक्रवार, 7 नवंबर 2014

आम जनता के हित में पत्रकारिता वक्त का तकाजा: व्यास

हिन्दुस्तान में जबसे मद्रास में छापाखाने की शुरूवात हुई तब से लेकर हिन्दुस्तान की पत्रकारिता में बहुत उतार-चढ़ाव देखे है। देश में उस समय अंग्रेजों की सरकार थी। देश के कानून-कायदे, रीति-रिवाज, परम्पराएँ सब सामन्तवादी, अंग्रेजीयत से भरपूर थी। इस देश में राय बहादूर, साहब होना अच्छी परम्परा माना जाता था। देश के बड़े तथाकथित बुद्धिजीवी अपने आप को अंग्रेजों से जुड़ा हुआ होने पर गौरान्वित महसूस करते थे। अंगे्रजी एवं अंग्रेजीयत का बहुमत में न होते हुए भी राज प्रशासन एवं समाज के उच्च मध्यम वर्ग में भारी दबदबा था। सत्ता एवं प्रशासन में आम आदमी की कोई भूमिका नहीं थी। देश का किसान और मजदूर दास नहीं भी कहे तब भी गुलामों जैसी स्थिति में ही जी रहा था, विशेष रूप से राजस्थान का आवाम सामन्तवाद एवं अंग्रेजों की गुलामी के खिलाफ दो मोर्चों पर संघर्ष कर रहा था। ऐसे दौर में हिन्दी पत्रकारिता की महत्ति आवश्यकता थी। महात्मा गांधी से लेकर शहीद-ए-आजम भगतसिंह ने हिन्दी में देशभर में संवाद की आवश्यकता को महसूस किया था। माना जाता था कि हिन्दी वो रक्त की तरह है जो शरीर के हर हिस्से में पहुंचकर शरीर को शक्ति देता है। ठीक हिन्दी की भी भारतीय समाज जीवन में महत्ति आवश्यकता महसूस की गई थी। दक्षिण से लेकर उत्तर, पूर्व से लेकर पश्चिम भारत तक कांग्रेस ने हिन्दी के माध्यम से ही देश में आजादी के आन्दोलन को गति देना का फैसला किया था। 1990 के पहले तक देश की पत्रकारिता राष्ट्र एवं राष्ट्रीयता से जुड़ी हुई थी परन्तु 1990 से लेकर आज दिनांक तक देश की पत्रकारिता वैश्विक अर्थव्यवस्था, लाभ की संस्कृति, पूंजीवादी सभ्यता एवं संस्कृति, उपभोक्ता एवं भोगवादी संस्कृति से स्वयं भी प्रभावित है एवं अपनी कलम से समाज को भी प्रभावित कर रही है। आज के दौर की पत्रकारिता सेवा का कार्य न होकर एक पैशे में तब्दील हो गई और पत्रकारिता को पैशा होना ही चाहिए परन्तु केवल निजी लाभ के लिए कुछ लिखना या कुछ न लिखना न व्यक्ति के हित में और न ही समाज के हित में। आज की पत्रकारिता काॅर्पोरेट संस्कृति की महज एक चारी बन के रह गई है। जबकि देश के आम आदमी की जरूरतों को पूरा करने वाली दबाव की नीति बनाने में पत्रकारिता को काम करना चाहिए था। आज आम आदमी की पहुंच में शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार, न्याय, आवास नहीं है। ऐसी स्थिति में जो सम्पन्न व्यक्ति है वो ही इन सुविधाओं का ठीक से इस्तेमाल कर पा रहे है अन्यथा व्यक्ति मानवीय गरिमा से वंचित गौर नारकीय जीवन जीने को मजबूर है। समाज का वंचित वर्ग जिसमें महिलाएं, बच्चे, वृद्ध, विकलांग, अनाथ लोग गौर तकलीफों में जीवन जी रहे है और देश ही नीतियां, नेता व नियत इनके जीवन से तकलीफ समाप्त करने के लिए गंभीर नहीं है। अब वक्त आ गया है देश की पत्रकारिता को सरकार की नीतियों को जो आम आदमी के हित में है उन नीतियों की जानकारी आम लोगों तक कराये साथ ही सरकार एवं प्रशासन को भी देश के आम आदमी की आवश्यकता, तकलीफ, भावनाएं, आक्रोश से समय-समय पर अवगत कराये। आवश्यकता होने पर जन आन्दोलन को प्रोत्साहित करने वाली पत्रकारिता को भी स्थापित करना होगा। उल्लेखनीय है कि आजादी के आन्दोलन में मुख्यधारा के पत्रकार देश की आजादी के आन्दोलन को अपनी पत्रकारिता एवं कलम की धार से ही न केवल प्रोत्साहित करते थे बल्कि वे स्वयं भी आजादी के आन्दोलन में सिपाही की भूमिका में भी नजर आते थे। देश का श्रमजीवी पत्रकार आज काॅर्पोरेट मीडिया की गुलामी का शिकार है परन्तु श्रमजीवी पत्रकारों के कथित संगठन न उन्हे गरिमामय जीवन दिला पा रहे है और न ही उन्हें समुचित सामाजिक सुरक्षा ही प्रदान करा पा रहे है। अब वक्त का तकाजा है कि पत्रकारिता आम आदमी के हित में हो एवं समाज आम आदमी के हित में काम करने वाले मीडिया के प्रति संवेदनशील सचेत एवं सुरक्षा कवच की तरह भूमिका निभाए।

मंगलवार, 26 अगस्त 2014

भ्रष्टाचार मुक्त समाज की एक मात्र गारंटी उत्पादन एवं वितरण के साधनों पर समाज का कब्जा हो: व्यास

आज उच्चतम न्यायालय ने अंतरिम निर्णय में कोयला ब्लाॅक आवंटन में एनडीए एवं यूपीए सरकारों के द्वारा मनमानी करने, पक्षपात करने, लोकसंपत्ति के गैर जिम्मेदराना आवंटन करने के लिए जिम्मेदार बताया और यह भी कहा कि देश का जो संसाधन है उसका आवंटन पारदर्शिता एवं निष्पक्षता के आधार पर होना चाहिए लेकिन भाई भतीजावाद, अपने लिए निजी लाभ प्राप्त करने की मानसिकता ने देश के संसाधनों का कोडियों के भाव आवंटन आम बात हो चुकी है। हथियारों के खरीद के मामले में भी दलाली के मामले में विश्वनाथ प्रतापसिंह जी ने वर्ष 1988 में एक जेहाद छेड़ा था, जिसने पूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी की 410 सीटों वाली सरकार को सत्ता से अपदस्त कर दिया। परन्तु उस समय तो मात्र 54 करोड़ तोपो की खरीद में दलाली का ही मामला सामने आया था। जिस पर पूरा देश उद्धलित हो गया और तथाकथित मिस्टर क्लीन को सत्ता से बाहर कर दिया और जनता दल के नेतृत्व में वी.पी. सिंह प्रधानमंत्री बने। 2004 के बाद 2014 तक इस हिन्दुस्तान में अब घोटाले नहीं होते, स्केम होते है। जिसमें लाखों करोड़ का नुकसान पहुंचाते हुए देश के संसाधनों को गैरवाजिब तरीके से देशी-विदेशी काॅर्पोरेट घरानों को कोडि़यों के दाम बेचा जा रहा है। लोह अयस्क के भण्डार हो या कोयला ब्लाॅक आवंटन या टू जी स्पेक्ट्रम आवंटन से सभी मामले एक लाख करोड़ से उपर के बनते है। केवल देश में कानून बना देने से या कथित जन लोकपाल के बना देने के बावजूद भी देश में भ्रष्टाचार नहीं रूक पायेगा, क्योकि जब तक निजी संपत्तियों को प्राप्त करने की मानसिकता रहेगी तब तक सार्वजनिक संपत्तियों को बचाये रखने के लिए कोई त्याग करने के लिए तत्पर नहीं होगा। आज देश के सार्वजनिक क्षेत्र की नवरत्न कंपनियों को भी नकारा साबित करते हुए सरकारे इसको निजी क्षेत्र में एनकेन देने पर आमादा है। आज पूरे देश में शिक्षा एवं चिकित्सा सेवा का कार्य न होकर एक व्यवसायिक धंधा हो गया है। जिसका परिणाम यह हुआ कि जिसके कारण आम आदमी की पहुंच से बाहर निकलती जा रहा है और दूसरी ओर सरकारी अस्पतालों एवं शिक्षण संस्थाओं को सुनियोजित तरीके से पूंजीपतियों के इशारे पर नकारा साबित करने का षडयंत्र रचा जा रहा है। साथ ही इनके प्रबंधन को निजी क्षेत्र में देकर देश के संसाधनों की लूट में निजी क्षेत्र को पर्याप्त भागीदारी देना ताकि देश की आम जनता की मेहनत से कमाया हुआ धन यह निजी क्षेत्र की कंपनिया डकार जायेगी। 2005 से लेकर आज तक कारखानों को छः लाख करोड़ की सब्सिडी दी गई परन्तु इन कारखानों ने न तो देश का निर्यात बढ़ाया और न ही वांछित रोजगार दिये। तीस हजार करोड़ की राशि से चलने वाली महानरेगा योजना को बदनाम करने में देश का पूंजीपति वर्ग संगठित होकर अभियान चला रहा है। ताकि महानरेगा जैसी योजना को भी बंद किया जा सके क्योंकि यही ऐसी योजना है जिसने हिन्दुस्तान के गरीब से गरीब व्यक्ति को रोजगार प्राप्त करने का कानूनी अधिकार दिया है और रोजगार न देने पर बेरोजगारी भत्ते देने की व्यवस्था की गई। देश का उद्योगपति वर्ग महानरेगा को सस्ते मजदूर प्राप्त करने में सबसे बड़ी बाधा मानता है इसलिए वह सोची समझी योजना के तहत नरेगा जैसी योजना को समाप्त करने पर आमादा है। आज मूल्य नियंत्रण आयोग न होने से देश में वस्तु एवं सेवाओं की कीमते उद्योग जगत तय करता है। परन्तु जो अन्न, दूध, सब्जियां, तिलहन, दलहन पैदा करता है वो कास्तकार अपनी फसल की कीमत तय नहीं करता है बल्कि देश का वाणिज्य वर्ग तय करता है। ये ही वर्ग है जिसने देश में सुनियोजित तरीके से महंगाई को बढ़ाने का काम किया है। आवश्यक वस्तुओं में वायदा व्यापार में इस देश में आवश्यक वस्तुओं की जमाखोरी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है परन्तु सरकारें आम आदमी के हित में भी जमा खोरी को रोकने में नाकामयाब रही है। अतः जब तक हिन्दुस्तान में वार्ड पंच से लेकर प्रधानमंत्री तक के लोग जन लोकपाल के दायरे में नहीं आयेंगे तब तक भ्रष्टचार पर प्रभावी अंकुश नहीं लग पायेगा साथ ही चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से लेकर मुख्य सचिव तक के अधिकारी कर्मचारियों पर भी ऐसे प्रभावी कानूनों के माध्यम से कठोर कार्यवाही की आवश्यकता है ताकि भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने में सार्थक प्रयास किये जा सके।

शुक्रवार, 15 अगस्त 2014

आजादी अभी अधूरी है और उड़ान बाकी है: व्यास

आजादी के 67 वर्ष बाद भी जब हम समीक्षा करते है तो पाते है कि जो हमें आजादी 15 अगस्त 1947 को हासिल हुई थी, वो केवल राजनैतिक आजादी थी और ऐसी आजादी भी हमें विभाजन एवं दंगे, उपद्रव, घृणा जैसे हालात की कीमत चुकाते हुए प्राप्त हुई थी। अंग्रेजों से तो देश को निश्चित रूप से आजादी मिल गई परन्तु अंगे्रजीयत से आज भी हमें मुक्ति नहीं मिली है। संयुक्त राष्ट्र संघ एवं उच्चतम न्यायालय में हम न तो हिन्दी को और न ही अन्य संवैधानिक भाषाओं को वो सम्मान और न ही वो हैसियत दिला पाये जिसकी ये भाषाएं हकदार है। आज भी तीन प्रतिशत लोगों की भाषा अंग्रेजी हमारी छाती पर मूंग दल रही है, पर हम अंग्रेजीयत के प्रभाव में अपनी अभिव्यक्ति को अपनी भाषा में न देकर अंग्रेजी में देने पर आमादा है क्योंकि हम लोगों को अहसास कराना चाहते है कि अभिजात्य वर्ग से है। सामन्तशाही भले ही समाप्त हो गई हो परन्तु आज के नौकरशाह एवं सत्ताधीश क्या उन सामन्तों से कम रोब गालीब करते है?
आज आर्थिक आजादी 80 प्रतिशत लोगों तक नहीं पहुंच पायी है। 22 करोड़ व्यक्ति देश में सभी मानवाधिकारों से वंचित है। इनके लिए शुद्ध पीने का पानी तक उपलब्ध नहीं है। खाद्य सुरक्षा कानून बना देने से क्या देश के वंचित वर्ग को वाकई खाद्य सुरक्षा मिल जायेगी? या केवल कानूनों के जंगल में ये कानून भी एक खरपतवार साबित होंगे। यूं तो देश में खाद्य अपमिश्रण कानून, औषधि नियंत्रण कानून, सौन्दर्य प्रसाधन कानून बन जाने के बावजूद भी देश में खाद्य वस्तुओं, दवाओं एवं सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री में जानलेवा मिलावट तक को हम भारत के गण नहीं रोक पाये। जहां तक तंत्र की बात है वह तो अपने सुरक्षा कवच को ओर मजबूत करने को आमादा है। देश का आम नागरिक तो द्रोपदी बना हुआ है जिसके चीरहरण के लिए कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका, काॅर्पोरेट मीडि़या एवं कथित एनजीओ तैयार बैठे है। है भारत के नागरिकों अब गोविन्द द्रोपदी का चीर बचाने के लिए स्वयं नहीं आयेंगे अब उन्हें खुद ही अपने अपमान का, अन्याय का, अत्याचार, मजबूरी का जन आन्दोलन के जरिये विरोध करना होगा। आज काॅर्पोरेट मीडि़या अपने पूंजीपती आँकाओं के कहने पर जन आन्दोलनों को कभी अमेरिका समर्थित या विदेशी पूंजी से संचालित बताने का भरसक प्रयास करेगा परन्तु आज के दिन आप संकल्प ले कि जब तक आप लोगों को आर्थिक, वास्तविक, राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व नागरिक आजादी हासिल नहीं हो जाती तब तक आप संघर्ष के रथ को थमने नहीं देंगे। आजादी के आन्दोलन के दौरान जिन मूल्यांे की बात कही गई थी आजादी के बाद जानबूझ कर उन मूल्यांे को श्रद्धाजंलि दे दी गई। पर हम भारत के गण चुपचाप देखते रहे। आज देश में नागरिकों को जातिवाद, साम्प्रदायिकता, क्षेत्रवाद व भाषावाद के नाम पर लड़वा जा रहा है। क्योंकि देश का सुविधाभोगी वर्ग नहीं चाहेगा कि लोगों का ध्यान बढ़ती हुई महंगाई, भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार एवं अन्यायपूर्ण व्यवस्था के कारणों पर जाये। इसलिए हम भारत के सभी नागरिकों को भारतीय संविधान की प्रस्थावना को मन से अंगीकार करते हुए आचरण से भी लोकतांत्रिक बनने का प्रयास करें। जीवन में जब तक व्यक्ति जवाबदेही एवं पारदर्शिता को आचरण का हिस्सा नहीं बनायेगा तब तक वो राज्य से भी जवाबदेही और पारदर्शिता की उम्मीद नहीं कर सकता।

सोमवार, 21 जुलाई 2014

मजबूत एवं प्रभावी लोकतंत्र के लिए पत्रकारों को अपनी महती भूमिका में आना होगा: व्यास

चित्तौड़गढ़ 20 जुलाई। जर्नलिस्ट एसोसिएशन आॅफ राजस्थान चित्तौड़ जिला ईकाई की ओर से डूंगला में जिला सम्मेलन सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता एवं एसोसिएशन (जार) के प्रान्तीय विधि सलाहकार एडवोकेट प्रहलाद राय व्यास ने कहा कि पत्रकार को आज आम जनता की दुःख एवं तकलीफों को सत्ता, प्रशासन तक पहुंचाना होगा और सरकारों की एवं प्रशासन की योजना एवं क्रियाकलापों को जनता के बीच में लाना होगा। ताकि मजबूत लोकतंत्र के लिए प्रभावी जनमत तैयार किया जा सके।
व्यास ने कहा कि आज कार्यपालिका, न्याय पालिका, विधायिका एवं कथित एनजीओ व सामाजिक सांस्कृतिक संगठन अपनी उचित भूमिका से हटकर गिरावट के दौर में है। आज सभी संस्थाओं में पारदर्शिता, जवाबदेही व सुशासन की प्रतिबद्धता कम हुई है। क्योंकि समाज में माॅडल हिरो आज कोई बचा ही नहीं है। कर्म की दार्शिकता का लगता है आज समय ही समाप्त होता जा रहा है। समाज में जो आपा-धापी है, भ्रष्टाचार उसका मूल कारण है समाज के गिरते नैतिक मूल्य। पत्रकारिता का आज तकाजा है कि वे काॅर्पोरेट इण्डिया के बजाय रियल इण्डिया या असली भारत के लिए अपनी धारदार कलम का उपयोग करें। पत्रकार ही वो शक्स होता है जो बिना किसी भय एवं पक्षपात के यदि कलम चलाये तो दुनिया की तकदीर एवं तस्वीर बदल सकता है।
एडवोकेट व्यास ने कार्यक्रम में स्पष्ट किया कि वे राजस्थान में पत्रकारों की क्षमताओं में वृद्धि करते हुए पत्रकारों को नवीनतम तकनीकों ने अवगत कराने के लिए प्रत्येक जिले में कम से कम एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करेंगे ताकि पत्रकार साथी अपनी ऊर्जा एवं क्षमता का अन्यायपूर्ण व्यवस्था के खात्में में उपयोग कर सके। कार्यक्रम में चित्तौड़ जिले के सांसद श्री सी.पी. जोशी मुख्य अतिथि थे एवं अध्यक्षता जिला संयोजक श्री गोविन्द त्रिपाठी ने की। जिलेभर से 125 से ज्यादा पत्रकार उक्त सम्मेलन में दो सत्रों में उपस्थित रहे।

शुक्रवार, 27 जून 2014

भारत में बाल श्रम न केवल अभिशाप, कलंक भी - व्यास

आजाद भारत में 26 जनवरी 1950 को देश का संविधान लागू हुआ। संविधान की मंशा के अनुसार देश में ऐसे गणराज्य की कल्पना की गई थी जो समाजवादी गणराज्य की अवधारणा पर खरा उतरता हो। परन्तु 1990 के बाद देश ने ऐसी अर्थव्यवस्था को स्वीकार किया जिसने समता, समानता, सहिष्णुता एवं सहअस्तित्व की धारणा को कमजोर कर दिया। 
शोषणविहीन न्यायपूर्ण समाज की रचना भारत के संविधान की आत्मा रही है। परन्तु देश में जिस शासन व्यवस्था को हम स्वीकार कर रहे है उस व्यवस्था में न केवल आर्थिक शोषण हो रहा है साथ ही राजनीतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक स्तर पर भी बहुसंख्यक समाज का निर्मम शोषण हो रहा है। वंचित वर्ग पूरी तरह वंचित ही है। इसके परिणाम स्वरूप बालश्रम निकल कर आया है। आज बंधआ मजदूरी, बालश्रम, ठेका मजदूर, सस्ता बुद्धीजीवी भी तकनीकी रूप से कुशल श्रमिक बनकर रह गया है। मोटे अनुमान के अनुसार देश में 6-7 करोड़ बालक है जो बालश्रमिक है। जिनके लिए शिक्षा, प्रशिक्षण, उचित देखभाल, संरक्षण, सुरक्षा केवल कागजी शब्द है। जब देश का बचपन कठोर श्रम कर के परिवार का पालन-पोषण करता हो तो कैसे अनुमान लगाया जा सकता है कि ऐसे बच्चे के मन पर अस्थाई आगात नहीं होंगे। आज देश का बचपन इन्ही मानसिक आघातों का शिकार है। आज बालश्रमिकों की तस्करी एवं यौनशोषण की बातें भी उभर कर सामने आ रही है। बच्चों के साथ में हिंसा एक नया रूप लेती जा रही है। आज दुनिया में बच्चों को आंतकवादी, माओवादी, चरमपंथी धार्मिक कठमुल्लाह बनाने का पक्का इंतजाम किया जा रहा है। ऐसे समय में हमें यह तय करना पडेगा कि यदि हम देश में शोषणविहीन न्यायपूर्ण समाज की रचना करना चाहते है तो निश्चित रूप से जिन परिवारों में बच्चें श्रम करते हो उन परिवारों मंें से कम से कम एक व्यक्ति को 280 दिन स्थाई रोजगार उपलब्ध कराना होगा जो न्यूनतम मजदूरी से कम देय नहीं होगा। साथ ही श्रम विभाग द्वारा संचालित तथाकथित बालश्रम विद्यालय की समीक्षा कराते हुए नये सीरे से देशभर में उच्च गुणवत्ता वाले आवासीय बालश्रम विद्यालय चालू करने पडेंगे जो नवोदय विद्यालय की तर्ज पर हो सकते है। आज भी श्रम विभाग या बाल अधिकार संरक्षण आयोग की जिम्मेदारी बनती है कि वे बच्चों के शोषण व अकल्याणकारी स्थितियों को आमुलचूल परिवर्तन करें। केवल अंतर्राष्ट्रीय चार्टर पर हस्ताक्षर कर देने से भारत सरकार अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त नहीं हो सकती। देश की न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका, मीड़िया एवं प्रबुद्ध समाज संगठनों की जिम्मेदारी बनती है कि वह देश में अन्यायपूर्ण व्यवस्था के खात्मे के लिए संवेदनशील होकर आचरण करें। केवल बयानबाजी ना करेें। आज सरकारें बदलने से यदि देश के हालात नहीं बदलते है तो जनता के साथ में यह एक राष्ट्रीय स्तर का धोखा होगा और ऐसे धोखेबाज लोगों के साथ क्या न्यायपूर्ण व्यवहार किया जा रहा है? यह देश का जनमत ही तय करेगा। 
मेरी स्पष्ट धारणा है कि यदि कोई भी सरकार दो साल साथ संतोष जनक कार्य न कर पाये तो देश की आम जनता को जनमत संग्रह के माध्यम से सरकार के क्रियाकलापों पर ठोस एवं प्रभावी कार्यवाही का अधिकार मिलना चाहिए। आज केवल सरकारें चुनाव जीत जाने के बाद में वे मान के चलती है कि देश के आम आदमी की अब कोई भूमिका ही नहीं बचती है। सूचना का अधिकार  कानून व्यक्ति को देश के हालात बदलने के लिए एक औजार भी उपलब्ध करवाता है। आवश्यकता होने पर भ्रष्टाचार व महंगाई के खिलाफ लड़ने का हथियार भी उपलब्ध कराता है। बेशर्ते देश की जनता ऐसे हथियार एवं औजार का इस्तेमान करना सीख जाये। इस हथियार एवं औजार को चलाने का प्रशिक्षण भी मैं लम्बे समय से देता आ रहा हूं तो मेरा अनुभव यह बोलता है कि सूचना का अधिकार कानून भ्रष्टाचार एवं महंगाई जैसे व्यक्तियों से लड़ने में ब्रह्मास्त्र तो नहीं हो सकता है परन्तु कारगर हथियार एवं औजार हो सकता है। 

मंगलवार, 11 मार्च 2014

आगामी लोकसभा चुनाव देश की दशा एवं दिशा तय करेंगे - व्यास

देशभर में 12 अप्रेल 2014 से 12 मई 2014 तक लोकसभा के एवं तीन राज्यों के विधानसभा के चुनाव होना निश्चित हुआ है। देश का 81 करोड़ से ज्यादा मतदाता आगामी चुनाव में मतदान करेगा। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि देश का 10 करोड़ से ज्यादा मतदाता वो है जो पहली बार मतदान करेगा। उसके मन में उठ रहे ज्यार भाटे को समझना प्रत्येक राजनीतिक दल एवं नेता के लिए चुनौतिपूर्ण कार्य है। चैखंभे राज की परिकल्पना रखने वाले डाॅ. राममनोहर लोहिया जी ने आजाद भारत में चैखंभा राज की मजबूती की कल्पना की थी। भारतीय लोकतंत्र में विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका एवं स्वतंत्र निर्भिक पत्रकारिता एवं प्रभावी जनसमूह की भी कल्पना की गई है। परन्तु आज विधायिका द्वारा बनाये गये कानून या तो बेअसर हो रहे है या लागू करने वाली एंजेसिया कानूनों को लागू करते समय अपनी इच्छा व इनिच्छा को ध्यान में रखके फैसले करती है। जिसके कारण जिन उद्देश्यों से कानून बनाये गये वो कानून उन उद्देश्यों को प्राप्ति नही कर पाता जिसके लिए उन्हे बनाया गया। आज भी कई लोकहित के कानून ठीक तरह से लागू नहीं हो पा रहे है। या जिन एंजेसियों को कानून लागू करने की जिम्मेदारी दी गई है वह सुविधा एवं असुविधा के आधार पर या व्यक्तिगत मान्यताओं से प्रभावी होकर कानूनों को निष्प्रभावी बना रहे है। कार्यपालिका या सरकार केवल वोट बैंक को कैसे लामबंद किया जा सकता है इसकों ध्यान में रखकर कानूनों का निर्माण एवं फैसले किये जा रहे है। सस्ती लोकप्रियता के चक्कर में सरकारे वो निर्णय भी कर रही है जो विकास के बजाय विनाश के बीज तैयार कर रहे है। न्यायपालिका लोगों को न्याय नहीं दे रही है केवल निर्णय दे रही है। वो प्रत्येक निर्णय जरूरी नहीं है कि न्यायपूर्ण हो। 
 आज की आवश्यकता यह है कि निर्णय न्यायपूर्ण हो और कानूनों की सही व्याख्या करते हो। स्वतंत्र एवं निष्पक्ष पत्रकारिता की उम्मीद आजादी के पहले की गई थी। परन्तु आज हिन्दुस्तान का मीडिया 81 हजार करोड़ का एक व्यापार बन कर रह गया है जिसमें हर निवेशक केवल आर्थिक लाभ ही ढ़ूंढता है। पत्रकारिता से संवेदनशीलता समाप्त होती जा रही है और नकारात्मक एवं पीत पत्रकारिता प्रभावी होती जा रही है। आज पेड न्यूज का व्यापार भी तेजी से फलता फूलता जा रहा है। भारतीय लोकतंत्र में पत्रकारिता काॅर्पोरेट इण्डिया का पेरोकार होती जा रहा है। जबकि उसे असली भारत के प्रति जवाबदेह, पारदर्शी होना चाहिए। आज आवश्यकता है समाज के शिक्षित और प्रशिक्षित जवाबदेह जनसमूह राजनीति, समाज व्यवस्था एवं सामाजिक ताने-बाने पर अपना नियंत्रण स्थापित करें अन्यथा देश में क्रांति हो या ना हो अराजकता तो हो ही सकती है। 
 जब तक समाज में नीति, नेता व नियत ठीक नहीं होगी तब तक आम आदमी के जीवन में कोई सूर्योदय नहीं हो पायेगा। आगामी चुनाव निश्चित रूप से नीति एवं नेता की अग्नि परीक्षा होगी कि वह जनहित में काम करते है या स्वहित में काम करते है। 

गुरुवार, 9 जनवरी 2014

आम आदमी के हितों की सुरक्षा केवल जन आन्दोलन से ही संभव है: व्यास

15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रेजी शासन की दासता से मुक्त हुआ था। आजादी के आन्दोलन से पूर्व स्वतंत्रता सैनानियों का एक मात्र लक्ष्य था कि भारत को अंग्रेजी हितों की दासता से मुक्त कराकर स्वराज्य कायम करना। इसके लिए शहीद-ए-आजम भगतसिंह एवं उन्हीं के पात के गर्म दल के नेता एनकेन प्रकारेण देश को न केवल अंग्रेजों से आजादी दिलाना चाहते थे, बल्कि सही मायने में देश को आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व नागरिक आजादी भी दिलाने चाहते थे। इसके विपरित विचारधारा रखने वाले महात्मा गांधी एवं उनके अनुयायी भी देश को रामराज्य की कल्पना के आधार पर देश को खड़ा करने का सपना देखते थे।
कहा तो तय था चीराग हर घर-घर के लिए,
आज चीराग नहीं मयस्सर पूरे शहर के लिए,
    ठीक यह उक्ति आजाद भारत में सही साबित हुई। केवल भारत के नागरिकों को राजनीतिक आजादी हासिल हुई थी, परन्तु सामाजिक एवं राजनीतिक ढांचा हमें आज भी आजादी महसूस नहीं करने देता। डॉ. राममनोहर लोहिया एवं जयप्रकाश नारायण आजाद भारत के वो राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने देश के आम आदमी को न केवल सामाजिक न्याय दिलाने की लडाई शुरू की थी, बल्कि देश के आम आदमी को मुद्दों के आधार पर राजनीति करना सिखाया। 1967 में डॉ. लोहिया के नेतृत्व में गैर कांग्रेसी सरकारों का गठन व 1975 की इमरजेन्सी के बाद श्री जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में इंदिरा गांधी की तानाशाही से मुक्ति दिलाने के बाद जनता पार्टी का उदय 1988 के बाद श्री विश्वनाथ प्रतापसिंह के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के विरूद्ध राजीव गांधी की 410 सीटों वाली सरकार को उखाड़ फैकने का श्रेय श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह को जाता है। श्री विश्वनाथ प्रतापसिंह ने रक्षा सौदों में दलाली जैसे मुद्धों को जनआन्दोलन का मुद्धा बनाया और आम आदमी को उदवेलित किया। जिसके परिणाम स्वरूप राजीव गांधी सरकार का पतन हुआ।
    अन्ना हजारे के नेतृत्व में 2011 में जनलोकपाल बिल को लेकर जो आन्दोलन हुआ। इस आन्दोलन को राजनीतिक दलों ने एवं नेताओं ने सिविल सोसायटी के लोगों के नाजायज हस्तक्षेप के रूप में लिया। सोसायटी के नेताओं ने बार-बार अन्ना हजारे, अरविन्द केजरीवाल व बाबा रामदेव को लल्कारा कि हम निर्वाचित प्रतिनिधि है, हमारे मामले में बेजाहस्तक्षेप संविधान विरूद्ध होगा। जन लोकपाल कानून बनाना है तो चुनाव लड़ के विधायका में आओं। अरविन्द केजरीवाल व साथियों ने इस चुनौति को स्वीकार किया और उन्होने माना कि बिना राजनीति में उतरे सरकारे तो बदली जा सकती है पर समाज में आमूलचूल परिवर्तन संभव नहीं है। आम आदमी पार्टी ने राजनीति को सामाजिक परिवर्तन के औजार के रूप में इस्तेमाल करने का निर्णय लिया जिसके परिणाम स्वरूप पिछले एक साल में आम आदमी के हक में एवं उसकी सुरक्षा के लिए जो आन्दोलन हुए उसके परिणाम स्वरूप आज दिल्ली में सरकार आम आदमी की बनी है बल्कि अब पूरे हिन्दुस्तान की राजनीति का एजेन्डा आम आदमी पार्टी तय कर रही है। आम आदमी के हित में जो जन आन्दोलन चला महंगाई, भ्रष्टाचार, भाई-भतिजावाद, सरकारी साधनों का अपव्यय एवं दुरविनियोग जैसे मामले रहे आज पूरे हिन्दुस्तान में सादगी एवं पारदर्शिता जवाबदेही ने जनता के मन को न केवल उदवेलित किया है बल्कि आम आदमी के हितों की सुरक्षा करने वाली सरकार की कल्पना भी देश में वो कर रहे है। इस प्रकार केवल जन आन्दोलन से ही आम आदमी के हालात में आमूलचूल परिवर्तन संभव है।