शुक्रवार, 9 नवंबर 2018

भीड़ तंत्र हावी हो रहा है लोक तंत्र पर-व्यास

2014 में मोदी जी के नेतृत्व में वो सरकार बनी जो हिन्दुसभा की पृष्ठभूमि में पली बढ़ी।संघ परिवार देश को हिन्दूराष्ट्र बनाने के लिए जायज नाजायज सब तरीके अपनाता रहा है।आजादी से पहले तक संघ परिवार ने कोई उल्लेखीय आजादी के आंदोलन में भूमिका नही निभा सका।वह जाने अनजाने में अंग्रेजो के नापाक इरादों को ही कामयाब बनाता रहा।कांग्रेस,क्रांतिकारी नेताओ,कम्युनिष्ठों से भी कभी नही जुड़ा।केवल निराशा हताशा की ही राजनीति करता रहा।मुस्लिम लीग ओर हिन्दु महासभा दोनों ही दल सम्प्रदायवादी राजनीति में लगे रहे।दोनों ही दल द्विराष्ट्रवाद की अवधारणा पर ही आचरण व्यवहार करते रहे।आखिर दिनों ही दल भारत के विभाजन को नही रोक पाए।वो चाहते भी थे कि देश हिन्दूराष्ट्र ओर मुस्लिम राष्ट्र अलग अलग हो जाये।अंग्रेज भी यही चाहते थे।आजादी के पहले हिंदू और मुस्लिम आबादी भारत मे निर्णायक ताकत थी।जिसे अंग्रेजो ने विभाजित किया ओर मुस्लिम लीग ओर हिन्दू महासभा संघ सब उनके नापाक इरादों को नही समझ पाए।आज तक भी नही समझ पा रहे है।आज भी भीड़ की आड़ लेकर लोकतांत्रिक ताने बाने,संस्कृति,संस्थाओं पर हमले करवा रहे है।आज सब कुकर्म भीड़ की आड़ में हो रहे है।हिन्दू मुस्लिम कार्ड,गाय गंगा,राम मंदिर,धारा 370,लव जिहाद सब काम भीड़ की आड़ में किये जा रहे है।कानून के शासन को धत्ता बताकर अपने विभाजनकारी एजेंडे पर संघ परिवार काम कर रहा है।सरदार पटेल को राजनीति में अपने स्वार्थ के लिए घसीट रहे है।जबकि सब जानते हैकि संघ सरदार पटेल के विचारो का विरोधी रहा है।सावरकर की विचारधारा के लोग सरदार पटेल के भक्त होने का स्वांग कर रहे है। 2019 में निर्णायक होगा।या तो भीड़तंत्र हावी होगा या उखड़ जाएगा।

मंगलवार, 2 अक्तूबर 2018

क्या आरक्षण की बैसाखियों की जरूरत आज भी वंचित वर्ग को-व्यास

आरक्षण शुरुआत में 10 साल के लिए शुरू हुआ था।लक्ष्य था देश के विकास में समुचित भागीदारी सनिश्चित करना।आज भी अनुसूचित जाति,जन जाति की भागीदारी सभी वर्ग में उतनी नही हुई जितनी होनी चाहिए थी।शिक्षा और रोजगार में आरक्षण आवश्यक था।आज मुद्दा है।पदोन्नति में आरक्षण मिलना चाहिए या नही। साथ ही सभी वर्ग की नोकरियों में बिना आरक्षण के लोग वहां तक पहुँच सकते है।जहां तक का लक्ष्य निर्धारित है।प्रथम व द्वितीय वर्ग की नोकरियों में वंचित वर्ग का प्रतिनिधित्व पर्याप्त नही है।एक ये भी मुद्दा अहम है कि राजनीति में आरक्षण यदि समाप्त कर दिया जाय तो क्या आज जितने सांसद विधायक एस टी,एस सी के जीत कर आ पाएंगे? शायद नही ! इसका अर्थ है।आज भी सामाजिक मानसिकता चिंताजनक है।महिला आरक्षण ने स्थानीय शासन में उन्हें पर्याप्त स्थान ही नही दिलाया बल्कि उनमें आत्मविश्वास भी पैदा किया है।
    आज मुद्दा है कि संसद और विधानसभाओ में महिलाओं को 33%आरक्षण क्यो नही मिलना चाहिए ? यदि हाँ तो कौन है जो बाधक बना हुआ है? चर्चा होनी ही चाहिए।केवल महिलाओं का रहनुमा बनने से कुछ नही होगा।वाकई उनके प्रति न्याय का भाव है।तो 33%आरक्षण के लिए अध्यादेश जारी करना ही चाहिए।
   आज भी महिलाओं के विरुध्द अपराधों में इज़ाफ़ा ही हो रहा है।फिर भी कुछ लोग कह रहे है।महिलाएं कानून का दुरुपयोग करती है।देश और दुनिया मे ऐसा कोई कानून नही है।जिसका दुरुपयोग न हुआ हो।क्या कानून ही समाप्त कर दे? आज आयकर,कस्टम,सम्पदा कर,सहित 68 कानून ऐसे है जिनका खुला दुरुपयोग होता है।पर कोई नही हल्ला मचाता ।

शुक्रवार, 14 सितंबर 2018

हिंदी न्याय की भाषा बने सुप्रीम कोर्ट में-व्यास

हिंदी दिवस के अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते सदस्य स्थाई लोक अदालत भीलवाड़ा प्रहलाद प्रह्लाद राय व्यास ने कहाँ कि"सुप्रीम कोर्ट के काम काज की भाषा हिंदी और क्षेत्रीय भाषा किया जाना लाज़मी है।ताकि आम आदमी को महसूस हो कि उसके पक्ष या विपक्ष में क्या कार्यवाही हो रही है"
     कानूनी सलाह व सुरक्षा केंद्र के इंचार्ज व्यास ने बताया कि'भाषा को समृद्ध बनाने के लिए रोजगार,विज्ञान अनुसंधान की भाषा बनाना होगा।

हिंदी न्याय की भाषा बने सुप्रीम कोर्ट में-व्यास

हिंदी दिवस के अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते सदस्य स्थाई लोक अदालत भीलवाड़ा प्रहलाद प्रह्लाद राय व्यास ने कहाँ कि"सुप्रीम कोर्ट के काम काज की भाषा हिंदी और क्षेत्रीय भाषा किया जाना लाज़मी है।ताकि आम आदमी को महसूस हो कि उसके पक्ष या विपक्ष में क्या कार्यवाही हो रही है"
     कानूनी सलाह व सुरक्षा केंद्र के इंचार्ज व्यास ने बताया कि'भाषा को समृद्ध बनाने के लिए रोजगार,विज्ञान अनुसंधान की भाषा बनाना होगा।

सोमवार, 25 जून 2018

आज फिर संविधान,लोकतंत्र विरोधी शक्तियां अपनी ताकत आजमाईश पर आमादा है-व्यास

आज ही के दिन 1975 में आपातकाल लगा था 43 साल बीत गए।पर मेरी स्मृतियों से वो वक्त आज भी विस्मृत नही हुआ है।मैं हिंदी का डिबेटर था।मुझे डिबेट के बजाय इंदिरा गांधी की उपलब्धियों पर भाषण देने को कहा गया।मैने इंदिरा राज की एक उपलब्धि आपात भी गिना दी।फिर क्या था।मुझे पूँछतांछ के लिए रोका गया।भाषण किसने लिखा?मैने का बिल्डज़ पढ़ता हूँ।तो जनता हूँ।देश की वास्तविकता को।तब अब तक मैं निरंतर सत्ता,प्रशासन,शक्ति द्वारा किये जा रहे न्याय,शोषण,अत्याचार,मनमाने पन, नादिरशाही,पदीय स्थिति के दुरुपयोग ओर मानवाधिकार हनन का विरोध कर रहा हूँ।आज देश को फिर से जातीय,साम्प्रदायिक,क्षेत्रीयता,भाषाई, मत मतान्तर की आड़ में पूंजीवादी,संविधान विरोधी शक्तियों द्वारा विभाजित करने का संगठित प्रयास किया जा रहा है।आईये मेरा मन कहता है कि फिर"संविधान,लोकतंत्र, मानवाधिकार,न्याययुक्त समाज बनाने की लड़ाई शुरू करने का वक्त आ गया है।अंग्रजो ने देश के ही लोगों को हिन्दू मुस्लिम,दलित स्वर्ण,अगड़ा पिछड़ा में विभाजित किया था।उन्ही की चालो से देश विभाजित भी हुआ।विभाजन के बाद भी नफ़रत की राजनीति दोनों ओर कम नही हुई बढ़ी ही है।क्या जर्मनी ,कोरिया की तरह फिर एका नही कर सकते है ?आज हम बाजारवादी कॉरपोरेट दुनिया विभाजित कर रही है।और हम उनके झाल में फसते ही जा रहे है।सोचो ओर कुछ ऐसा करोबकी लोग हमें हितालरवादी न कहे बल्कि लोकतंत्र,सँविधान समर्थक कहे।

शुक्रवार, 22 जून 2018

जातिवादी,सम्प्रदायवादी मानसिकता हमे विरासत में मिली थी-व्यास

आज भारतीय समाज मे जातीय,संप्रदायवादी मानसिकता विकसित की जा रही है।पिछले 4 साल में हिन्दू मुस्लिमो में नफ़रत ओर अविश्वास का माहौल वोट के खातिर विकसित ही किया गया बल्कि पल्लवित पोषित भी किया गया जा रहा है।देश के अल्पसंख्यको पर सामान्य आचार संहिता के नाम पर बहुसंख्यक रीतिरिवाज,प्रथाओं,मान्यताओं को थोपने का प्रयास किया जा रहा है।
    आज हिन्दूओ में भी दलित पिछड़ो ओर स्वर्ण वर्ग के बीच आरक्षण की आड़ में तनाव और अविश्वास का माहौल बढ़ा ही है।आदिवासियो में भी राजस्थान विशेष में भील गरासियों ओर मीणो में तनाव और उपद्रव तक का माहौल रहा था।सत्तारूढ़ ओर
विपक्ष दोनों इनके हितेषी बनकर आग में घी डालने का ही काम करते रहे। किसी ने
 जिम्मेदाराना व्यवहार और संजीदा आचरण नही किया।आज जातिवादी,संप्रदायवादी
खरनाक दौर में पहुँच गई है।आज प्रेस तक जातीय सम्प्रदायवादी सोच चिंतन से ग्रसित है।कथित सामाजिक संगठन सामाजिक न होकर जातीय या सम्प्रदायवादी बनकर रह गए है।
 शहीद भगतसिंह जी की विचारधारा तो विलुप्त ही हो गई है।आज जोड़ तोड़ की राजनीति को ही सभी पक्ष महत्व दे रहे है।शिक्षा के व्यवसायीकरण में आदमी को पैसा कमाने की महज़ मशीन बनाकर रख दिया है।सहिष्णुता समाप्त प्रायः ही हो गई है।