सोमवार, 25 जून 2018

आज फिर संविधान,लोकतंत्र विरोधी शक्तियां अपनी ताकत आजमाईश पर आमादा है-व्यास

आज ही के दिन 1975 में आपातकाल लगा था 43 साल बीत गए।पर मेरी स्मृतियों से वो वक्त आज भी विस्मृत नही हुआ है।मैं हिंदी का डिबेटर था।मुझे डिबेट के बजाय इंदिरा गांधी की उपलब्धियों पर भाषण देने को कहा गया।मैने इंदिरा राज की एक उपलब्धि आपात भी गिना दी।फिर क्या था।मुझे पूँछतांछ के लिए रोका गया।भाषण किसने लिखा?मैने का बिल्डज़ पढ़ता हूँ।तो जनता हूँ।देश की वास्तविकता को।तब अब तक मैं निरंतर सत्ता,प्रशासन,शक्ति द्वारा किये जा रहे न्याय,शोषण,अत्याचार,मनमाने पन, नादिरशाही,पदीय स्थिति के दुरुपयोग ओर मानवाधिकार हनन का विरोध कर रहा हूँ।आज देश को फिर से जातीय,साम्प्रदायिक,क्षेत्रीयता,भाषाई, मत मतान्तर की आड़ में पूंजीवादी,संविधान विरोधी शक्तियों द्वारा विभाजित करने का संगठित प्रयास किया जा रहा है।आईये मेरा मन कहता है कि फिर"संविधान,लोकतंत्र, मानवाधिकार,न्याययुक्त समाज बनाने की लड़ाई शुरू करने का वक्त आ गया है।अंग्रजो ने देश के ही लोगों को हिन्दू मुस्लिम,दलित स्वर्ण,अगड़ा पिछड़ा में विभाजित किया था।उन्ही की चालो से देश विभाजित भी हुआ।विभाजन के बाद भी नफ़रत की राजनीति दोनों ओर कम नही हुई बढ़ी ही है।क्या जर्मनी ,कोरिया की तरह फिर एका नही कर सकते है ?आज हम बाजारवादी कॉरपोरेट दुनिया विभाजित कर रही है।और हम उनके झाल में फसते ही जा रहे है।सोचो ओर कुछ ऐसा करोबकी लोग हमें हितालरवादी न कहे बल्कि लोकतंत्र,सँविधान समर्थक कहे।

शुक्रवार, 22 जून 2018

जातिवादी,सम्प्रदायवादी मानसिकता हमे विरासत में मिली थी-व्यास

आज भारतीय समाज मे जातीय,संप्रदायवादी मानसिकता विकसित की जा रही है।पिछले 4 साल में हिन्दू मुस्लिमो में नफ़रत ओर अविश्वास का माहौल वोट के खातिर विकसित ही किया गया बल्कि पल्लवित पोषित भी किया गया जा रहा है।देश के अल्पसंख्यको पर सामान्य आचार संहिता के नाम पर बहुसंख्यक रीतिरिवाज,प्रथाओं,मान्यताओं को थोपने का प्रयास किया जा रहा है।
    आज हिन्दूओ में भी दलित पिछड़ो ओर स्वर्ण वर्ग के बीच आरक्षण की आड़ में तनाव और अविश्वास का माहौल बढ़ा ही है।आदिवासियो में भी राजस्थान विशेष में भील गरासियों ओर मीणो में तनाव और उपद्रव तक का माहौल रहा था।सत्तारूढ़ ओर
विपक्ष दोनों इनके हितेषी बनकर आग में घी डालने का ही काम करते रहे। किसी ने
 जिम्मेदाराना व्यवहार और संजीदा आचरण नही किया।आज जातिवादी,संप्रदायवादी
खरनाक दौर में पहुँच गई है।आज प्रेस तक जातीय सम्प्रदायवादी सोच चिंतन से ग्रसित है।कथित सामाजिक संगठन सामाजिक न होकर जातीय या सम्प्रदायवादी बनकर रह गए है।
 शहीद भगतसिंह जी की विचारधारा तो विलुप्त ही हो गई है।आज जोड़ तोड़ की राजनीति को ही सभी पक्ष महत्व दे रहे है।शिक्षा के व्यवसायीकरण में आदमी को पैसा कमाने की महज़ मशीन बनाकर रख दिया है।सहिष्णुता समाप्त प्रायः ही हो गई है।