शनिवार, 26 जनवरी 2013

शुक्रवार, 25 जनवरी 2013

भारतीय गणतंत्र आम आदमी की उम्मीद पर खरा नही उतरा है - व्यास


     भारतीय संविधान 26 जनवरी 1950 से इस देश में लागू होने के बावजूद भी आम आदमी की उम्मीद, आकांक्षा, इच्छा, जरूरत को ध्यान में रखते कोई बुनियादी काम नही कर पाया हैं। आज तो हालात ये है कि गण और तंत्र दोनो आमने-सामने युद्ध के मेदान में दुश्मनो की सेनाएं जैसे खड़ी होती है वैसे खड़े है। आज गण के हित अलग है और तंत्र के हित अलग है। देश की कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका एवं देश के जनसंगठन कोई भी ठीक तरीके से जनभावनाओं के अनुरूप कार्य नही कर पा रहे है। 90 प्रतिशत जनसंगठन चाहे छात्र, युवा, महिला, श्रमिक या वंचित वर्ग के संगठन हो किसी न किसी राजनैतिक संगठन से निर्देेशित हो रहे है। जबकि होना यह चाहिए कि उन्हें निश्चित विचारधारा, कार्यक्रम व समयबद्ध योजना के आधार पर काम करना चाहिए। कार्यपालिका में सरकार के अन्दर बेठे जनप्रतिनिधि व नौकरशाह ऐसी नीतिया एवं कानूनो को लागू कर रहे है जो आम आदमी को न केवल तकलीफ में डाल रहे है बल्कि उसे भ्रष्ट बनाने के साथ-साथ नैतिक रूप से कमजोर भी बनाने का प्रयास किया जा रहा हैं। आज जो कानून बनते है उसमें इस तरह की अपेक्षा की जाती है कि वह साबित करे कि वह इमानदार है और उसने किसी कानून का उल्लंघन नही किया है। यह दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि देश के आम आदमी को हमारी कार्यपालिका व्यवस्था इमानदार मानने को तैयार ही नहीं है क्योंकि नीतिया बनाने वाले खुद जब पारदर्शी नहीं होते है तो वह जनता की अदालत में जवाबदेही से बचने के लिए दोष जनता पर ही मढ देते है। देश की न्यायपालिका कुछ अपवादो को छोडके देश के वंचित वर्ग को उसके संवैधानिक अधिकारों को दिलाने में बहुत ज्यादा सफल नहीं हुई हैं। हिन्दुस्तान का 80 प्रतिशत व्यक्ति आज गरिमामय जीवन जीने के अधिकार से वंचित है। सूचनाएं आज भी आम आदमियों के बीच में नहीं जा रही हे। जिससे वो तय नहीं कर पा रहा है कि देश के खजाने का उपयोग कौन लोग किस प्रकार कर रहे है। कहा विकास हो रहा है और कहां विनाश हो रहा है। सार्वजनिक सम्पतिया एवं खजाने पर आम आदमी का या देशक े समाज का अधिकार होता है परन्तु सरकार में बैठने वाले लोग इसे महज सरकारी सम्पतिया एवं कोष मानकर मनमाने तरीके से इसका इस्तेमाल एवं आवंटन करते है। अब प्रश्न यह खडा होता है कि देश की संसद को या विधायिका को जो कानून बनाने चाहिए थे वो नहीं बने आज भी न्यायपालिका के क्षेत्राधिकार से कई ट्रीब्यूनल प्राधिकरण, मच बनाकर न्यायपालिका को कमजोर करने का अभियान चलाया जा रहा है। न्यायपालिका यदि न्यायिक अवमानना की धमकी देकर आम जनता को उनके खिलाफ विचार व्यक्त करने से रोकती है तो निश्चित तौर पर यह संविधान की भावनाओ के विपरित होगा। आज जनसंगठन, गैरसरकारी संगठन, स्वयंसेवी संगठन, धर्माथ ट्रस्ट एवं सामाजिक संगठन अपने आप को समाज के साथ जुड़ा हुआ परन्तु इन संगठनों पर भी पैसो के बल पर या राजनैतिक पहुच के आधार पर लोग काबिज हो जाते है और जनता की जरूरतो को दरकिनार करते हुए अपनी पहुच बनाने में लगे रहते है। आज हालात यह है कि गण या जनता पूरी तरह ठगा हुआ महसूस कर रही है। जनता की आवाज को बुलंद करते हुए मजबूत, प्रभावी, निश्चित दिशा व कार्यक्रम के आधार पर जनता की जरूरतो को मद्देनजर रखते हुए प्रभावी, संगठित एवं सतत आन्दोलन चलाने की आवश्यकता है ताकि जनता को उसके वास्तविक अधिकार हासिल कर सके। यह उल्लेखकरना लाजमी है कि जनता का आंदोलन जब तक जनता के पैसो से नही चलेगा तब तक वह आंदोलन जन आंदोलन न होकर जो पैसा लगाएगा उनका आंदोलन होगा।।

गुरुवार, 10 जनवरी 2013

अपराधजनित मानसिकता के कारण ही दूनिया में अपराध हो रहे है जिसका खात्मा जरूरी है-व्यास


     आज किसी भी समाज में जो अपराध होते है वह विशेष परिस्थ्तियो की देन है या व्यक्ति अनुवांशिक रूप से ही अपराधी होता है। आज दुनिया में मुख्यतः चार तरह के अपराधी नजर आते है। पहली श्रेणी में बिना किसी इच्छा के कोई कार्य हो जाये या यूं कहे कि बिना किसी आशय के किया जाने वाला कार्य जो अपराध हो जाए। इस तरह के मामलो में दण्ड विधान क्षतिपूर्ति दिलाकर या कम समय का कारावास की सजा दिलाकर अपराधी को सुधरने का अवसर दिया जाता है। दूसरी श्रेणी में वो अपराधी आते है जो आदतन अपराधी होते हे। इस श्रेणी में अपराधी की पारिवारिक एवं सामाजिक परिस्थितिया निश्चित रूप से उसे आदतन अपराधी बनाने में मदद करती हेै। इस श्रेणी के अपराधियों को भी समाज एवं परिवार की परिस्थितिया बदलकर सुधारा जा सकता है क्योकि अपराधजनित मानसिकता का बदलाव ही व्यक्ति में बदलाव को सुनिश्चित करता है। तीसरी श्रेणी में दक्ष एवं प्रोबेशनल अपराधी आते है जो किसी निश्चित अपराध को करने के लिये पूरी तरह ट्रेण्ड या प्रशिक्षित होते है। इस श्रेणी के अपराधियों का दिमाग बदलने के लिये उनके ट्रेनर उनके दिल और दिमाग को बदलने के लिये एक लम्बा अभियान चलाते है ताकि ऐसे व्यक्ति निर्धारित व्यक्तियों को एवं समाज को ऐन-केन प्रकारेण हर प्रकार से नुकसान पहुचाने के लिये आमादा हो जाते है चाहे उन्हे मानव बंब ही क्यो न बनना पड़े। चौथी और अन्तिम श्रेणी में सफेदपोश अपराधी आते है जिनको आम बोलचाल में सफेदपोस गुण्डा भी कहा जाता है या वाईटकोलन क्रिमीनल भी कहा जाता है। मजे की बात यह है कि इस तरह के अपराधियों को समाज अपराधी ही नहीं मानता है। साथ ही ऐसे अपराधी व्यक्ति समाज में पद, प्रतिष्ठा, सम्पति अधिकारो के केन्द्र में होने के कारण समाज का साधारण व्यक्ति इनके खिलाफ ठीक तरह से आवाज भी बुलंद नहीं कर पाता है परन्तु आम आदमी को यह मानसिक बदलाव करना पडेगा कि सफेदपोस अपराधियों के सजा से बच निकल जाने के कारण ही आदतन एवं प्रोबेशनल अपराधियों के हौसले बुलंद होते है। आज समाज में न्याय एवं दण्ड प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आदतन अपराधियों को एवं प्रशिक्षित अपराधियों को दण्डित करने के साथ-साथ सफेदपोस अपराधियों को भी कठोर दण्ड देते हुए न्याय प्रशासन का संचालन करना चाहिए नही तो समाज में यह धारणा हर समय बनी रहेगी कि ऊचे रसूक वाले जेल में नहीं जाएगा और जिसके कोई रसूकात नहीं है वो जेल में यू ही सड़ेगा। पैसा देकर छुटने एवं पैसे के बल पर बड़े से बड़े जुगाड़ को करने में ऐसे लोग सफल ना हो इसके लिये निर्णायक प्रयास होने चाहिए तभी अपराधजनित मानसिकता खत्म हो सकती है। समाज में नशा भी अपराधों को जन्म देने वाली स्थिति है इसमें भी बदलाव जरूरी है।

मंगलवार, 1 जनवरी 2013

विधि: आम आदमी है हासिये पर मुख्य धारा में शामिल होने की ...

विधि: आम आदमी है हासिये पर मुख्य धारा में शामिल होने की ...: आजादी के बाद हिन्दूस्तान का आम आदमी शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार, न्याय, उर्जा के साधन, पानी, आवास एवं पर्यावरण जैसे मुद्दो पर हासिये से वंचित...

आम आदमी है हासिये पर मुख्य धारा में शामिल होने की लड़ाई जारी है- व्यास


आजादी के बाद हिन्दूस्तान का आम आदमी शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार, न्याय, उर्जा के साधन, पानी, आवास एवं पर्यावरण जैसे मुद्दो पर हासिये से वंचित है। राजसता भारत में कार्पोरेट घरानो के हाथ में हे। देश के राजनैतिक दल, संसद, न्यायपालिका, पुलिस यहा तक कि मिलिट्री भी जाने अनजाने में कार्पोरेट घरानो के पक्ष में ही कार्य कर रही है। इसी स्थिति में कार्पोरेट घराने अपने पैसो के दम पर सरकारो को एवं राजनैतिक दलो को अपने पक्ष मे नीतिया बनाने में बाध्य करते है। वोट आम आदमी देता है परन्तु निर्वाचित होन के बाद उनके प्रतिनिधि उनके सेवक न होकर मालिक बन बेठते है। ऐसे में वो जिनसे चंदा, रिश्वत, दलाली लेते है उसी के पक्ष में खडे हो जाते है। अब तो सार्वजनिक जीवन में निर्लज्जमा चरम सीमा पर है। सार्वजनिक जीवन में जीवन मूल्य समाप्त से हो गये है। धार्मिक नेताओं से भी व्यक्तियों मे नैतिक मूल्य नहीं जिंदा हे। ऐसे में नागरिको में या आम आदमी में ये आम चर्चा है कि सार्वजनिक जीवन में कर्म की दार्शनिकता का महत्व समाप्त हो रहा है अर्थात जो हाड-तोड मेहनत करेगा वो तो यू ही भूखा ही मरेगा परन्तु जो लोगो के शोषण से पैसो का पहाड़ इकटठा करेगा वो ही दूनिया के एशो-आराम का भोगी होगा। इस नियति ने आम आदमी में भी ऐसो-आराम के प्रति एक ललक पेदा की है यही बाजारवाद का एक दुर्गुण है। इसी व्यवस्था ने आम आदमी तक को पथ भ्रष्ट करने का काम किया हैं। आज समाज में हिंसा, नशा एवं अश्लिलता तेजी से बढ रही है इसके पीछे पूंजीवादी व्यवस्था का सोचा समझा षडयंत्र है। जब तक आम आदमी इन तीन गुणो से मुक्त नहीं होगा तब तक आम आदमी को भी न्याय प्राप्त नही ंहोगा। केवल पार्टी बना देने से ही आम आदमी को न्याय नहीं मिल जायेगा इसके लिये नीतिया, नियत एवं निष्ठावान नेताओं की भी जरूरत पड़ेगी। 2013 से ही हमें न्यायपूर्ण समाज की रचना के लिये निरन्तर संघर्ष करना होगा। हमे धेर्य, विवेक और ज्ञान से लेस होकर नई समाज की रचना के लिये लड़ाई मे शामिल होना होगा। यही 2013 के लिये सही रास्ता हो सकता है।