मंगलवार, 26 अगस्त 2014

भ्रष्टाचार मुक्त समाज की एक मात्र गारंटी उत्पादन एवं वितरण के साधनों पर समाज का कब्जा हो: व्यास

आज उच्चतम न्यायालय ने अंतरिम निर्णय में कोयला ब्लाॅक आवंटन में एनडीए एवं यूपीए सरकारों के द्वारा मनमानी करने, पक्षपात करने, लोकसंपत्ति के गैर जिम्मेदराना आवंटन करने के लिए जिम्मेदार बताया और यह भी कहा कि देश का जो संसाधन है उसका आवंटन पारदर्शिता एवं निष्पक्षता के आधार पर होना चाहिए लेकिन भाई भतीजावाद, अपने लिए निजी लाभ प्राप्त करने की मानसिकता ने देश के संसाधनों का कोडियों के भाव आवंटन आम बात हो चुकी है। हथियारों के खरीद के मामले में भी दलाली के मामले में विश्वनाथ प्रतापसिंह जी ने वर्ष 1988 में एक जेहाद छेड़ा था, जिसने पूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी की 410 सीटों वाली सरकार को सत्ता से अपदस्त कर दिया। परन्तु उस समय तो मात्र 54 करोड़ तोपो की खरीद में दलाली का ही मामला सामने आया था। जिस पर पूरा देश उद्धलित हो गया और तथाकथित मिस्टर क्लीन को सत्ता से बाहर कर दिया और जनता दल के नेतृत्व में वी.पी. सिंह प्रधानमंत्री बने। 2004 के बाद 2014 तक इस हिन्दुस्तान में अब घोटाले नहीं होते, स्केम होते है। जिसमें लाखों करोड़ का नुकसान पहुंचाते हुए देश के संसाधनों को गैरवाजिब तरीके से देशी-विदेशी काॅर्पोरेट घरानों को कोडि़यों के दाम बेचा जा रहा है। लोह अयस्क के भण्डार हो या कोयला ब्लाॅक आवंटन या टू जी स्पेक्ट्रम आवंटन से सभी मामले एक लाख करोड़ से उपर के बनते है। केवल देश में कानून बना देने से या कथित जन लोकपाल के बना देने के बावजूद भी देश में भ्रष्टाचार नहीं रूक पायेगा, क्योकि जब तक निजी संपत्तियों को प्राप्त करने की मानसिकता रहेगी तब तक सार्वजनिक संपत्तियों को बचाये रखने के लिए कोई त्याग करने के लिए तत्पर नहीं होगा। आज देश के सार्वजनिक क्षेत्र की नवरत्न कंपनियों को भी नकारा साबित करते हुए सरकारे इसको निजी क्षेत्र में एनकेन देने पर आमादा है। आज पूरे देश में शिक्षा एवं चिकित्सा सेवा का कार्य न होकर एक व्यवसायिक धंधा हो गया है। जिसका परिणाम यह हुआ कि जिसके कारण आम आदमी की पहुंच से बाहर निकलती जा रहा है और दूसरी ओर सरकारी अस्पतालों एवं शिक्षण संस्थाओं को सुनियोजित तरीके से पूंजीपतियों के इशारे पर नकारा साबित करने का षडयंत्र रचा जा रहा है। साथ ही इनके प्रबंधन को निजी क्षेत्र में देकर देश के संसाधनों की लूट में निजी क्षेत्र को पर्याप्त भागीदारी देना ताकि देश की आम जनता की मेहनत से कमाया हुआ धन यह निजी क्षेत्र की कंपनिया डकार जायेगी। 2005 से लेकर आज तक कारखानों को छः लाख करोड़ की सब्सिडी दी गई परन्तु इन कारखानों ने न तो देश का निर्यात बढ़ाया और न ही वांछित रोजगार दिये। तीस हजार करोड़ की राशि से चलने वाली महानरेगा योजना को बदनाम करने में देश का पूंजीपति वर्ग संगठित होकर अभियान चला रहा है। ताकि महानरेगा जैसी योजना को भी बंद किया जा सके क्योंकि यही ऐसी योजना है जिसने हिन्दुस्तान के गरीब से गरीब व्यक्ति को रोजगार प्राप्त करने का कानूनी अधिकार दिया है और रोजगार न देने पर बेरोजगारी भत्ते देने की व्यवस्था की गई। देश का उद्योगपति वर्ग महानरेगा को सस्ते मजदूर प्राप्त करने में सबसे बड़ी बाधा मानता है इसलिए वह सोची समझी योजना के तहत नरेगा जैसी योजना को समाप्त करने पर आमादा है। आज मूल्य नियंत्रण आयोग न होने से देश में वस्तु एवं सेवाओं की कीमते उद्योग जगत तय करता है। परन्तु जो अन्न, दूध, सब्जियां, तिलहन, दलहन पैदा करता है वो कास्तकार अपनी फसल की कीमत तय नहीं करता है बल्कि देश का वाणिज्य वर्ग तय करता है। ये ही वर्ग है जिसने देश में सुनियोजित तरीके से महंगाई को बढ़ाने का काम किया है। आवश्यक वस्तुओं में वायदा व्यापार में इस देश में आवश्यक वस्तुओं की जमाखोरी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है परन्तु सरकारें आम आदमी के हित में भी जमा खोरी को रोकने में नाकामयाब रही है। अतः जब तक हिन्दुस्तान में वार्ड पंच से लेकर प्रधानमंत्री तक के लोग जन लोकपाल के दायरे में नहीं आयेंगे तब तक भ्रष्टचार पर प्रभावी अंकुश नहीं लग पायेगा साथ ही चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से लेकर मुख्य सचिव तक के अधिकारी कर्मचारियों पर भी ऐसे प्रभावी कानूनों के माध्यम से कठोर कार्यवाही की आवश्यकता है ताकि भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने में सार्थक प्रयास किये जा सके।

शुक्रवार, 15 अगस्त 2014

आजादी अभी अधूरी है और उड़ान बाकी है: व्यास

आजादी के 67 वर्ष बाद भी जब हम समीक्षा करते है तो पाते है कि जो हमें आजादी 15 अगस्त 1947 को हासिल हुई थी, वो केवल राजनैतिक आजादी थी और ऐसी आजादी भी हमें विभाजन एवं दंगे, उपद्रव, घृणा जैसे हालात की कीमत चुकाते हुए प्राप्त हुई थी। अंग्रेजों से तो देश को निश्चित रूप से आजादी मिल गई परन्तु अंगे्रजीयत से आज भी हमें मुक्ति नहीं मिली है। संयुक्त राष्ट्र संघ एवं उच्चतम न्यायालय में हम न तो हिन्दी को और न ही अन्य संवैधानिक भाषाओं को वो सम्मान और न ही वो हैसियत दिला पाये जिसकी ये भाषाएं हकदार है। आज भी तीन प्रतिशत लोगों की भाषा अंग्रेजी हमारी छाती पर मूंग दल रही है, पर हम अंग्रेजीयत के प्रभाव में अपनी अभिव्यक्ति को अपनी भाषा में न देकर अंग्रेजी में देने पर आमादा है क्योंकि हम लोगों को अहसास कराना चाहते है कि अभिजात्य वर्ग से है। सामन्तशाही भले ही समाप्त हो गई हो परन्तु आज के नौकरशाह एवं सत्ताधीश क्या उन सामन्तों से कम रोब गालीब करते है?
आज आर्थिक आजादी 80 प्रतिशत लोगों तक नहीं पहुंच पायी है। 22 करोड़ व्यक्ति देश में सभी मानवाधिकारों से वंचित है। इनके लिए शुद्ध पीने का पानी तक उपलब्ध नहीं है। खाद्य सुरक्षा कानून बना देने से क्या देश के वंचित वर्ग को वाकई खाद्य सुरक्षा मिल जायेगी? या केवल कानूनों के जंगल में ये कानून भी एक खरपतवार साबित होंगे। यूं तो देश में खाद्य अपमिश्रण कानून, औषधि नियंत्रण कानून, सौन्दर्य प्रसाधन कानून बन जाने के बावजूद भी देश में खाद्य वस्तुओं, दवाओं एवं सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री में जानलेवा मिलावट तक को हम भारत के गण नहीं रोक पाये। जहां तक तंत्र की बात है वह तो अपने सुरक्षा कवच को ओर मजबूत करने को आमादा है। देश का आम नागरिक तो द्रोपदी बना हुआ है जिसके चीरहरण के लिए कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका, काॅर्पोरेट मीडि़या एवं कथित एनजीओ तैयार बैठे है। है भारत के नागरिकों अब गोविन्द द्रोपदी का चीर बचाने के लिए स्वयं नहीं आयेंगे अब उन्हें खुद ही अपने अपमान का, अन्याय का, अत्याचार, मजबूरी का जन आन्दोलन के जरिये विरोध करना होगा। आज काॅर्पोरेट मीडि़या अपने पूंजीपती आँकाओं के कहने पर जन आन्दोलनों को कभी अमेरिका समर्थित या विदेशी पूंजी से संचालित बताने का भरसक प्रयास करेगा परन्तु आज के दिन आप संकल्प ले कि जब तक आप लोगों को आर्थिक, वास्तविक, राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व नागरिक आजादी हासिल नहीं हो जाती तब तक आप संघर्ष के रथ को थमने नहीं देंगे। आजादी के आन्दोलन के दौरान जिन मूल्यांे की बात कही गई थी आजादी के बाद जानबूझ कर उन मूल्यांे को श्रद्धाजंलि दे दी गई। पर हम भारत के गण चुपचाप देखते रहे। आज देश में नागरिकों को जातिवाद, साम्प्रदायिकता, क्षेत्रवाद व भाषावाद के नाम पर लड़वा जा रहा है। क्योंकि देश का सुविधाभोगी वर्ग नहीं चाहेगा कि लोगों का ध्यान बढ़ती हुई महंगाई, भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार एवं अन्यायपूर्ण व्यवस्था के कारणों पर जाये। इसलिए हम भारत के सभी नागरिकों को भारतीय संविधान की प्रस्थावना को मन से अंगीकार करते हुए आचरण से भी लोकतांत्रिक बनने का प्रयास करें। जीवन में जब तक व्यक्ति जवाबदेही एवं पारदर्शिता को आचरण का हिस्सा नहीं बनायेगा तब तक वो राज्य से भी जवाबदेही और पारदर्शिता की उम्मीद नहीं कर सकता।