गुरुवार, 10 जनवरी 2013

अपराधजनित मानसिकता के कारण ही दूनिया में अपराध हो रहे है जिसका खात्मा जरूरी है-व्यास


     आज किसी भी समाज में जो अपराध होते है वह विशेष परिस्थ्तियो की देन है या व्यक्ति अनुवांशिक रूप से ही अपराधी होता है। आज दुनिया में मुख्यतः चार तरह के अपराधी नजर आते है। पहली श्रेणी में बिना किसी इच्छा के कोई कार्य हो जाये या यूं कहे कि बिना किसी आशय के किया जाने वाला कार्य जो अपराध हो जाए। इस तरह के मामलो में दण्ड विधान क्षतिपूर्ति दिलाकर या कम समय का कारावास की सजा दिलाकर अपराधी को सुधरने का अवसर दिया जाता है। दूसरी श्रेणी में वो अपराधी आते है जो आदतन अपराधी होते हे। इस श्रेणी में अपराधी की पारिवारिक एवं सामाजिक परिस्थितिया निश्चित रूप से उसे आदतन अपराधी बनाने में मदद करती हेै। इस श्रेणी के अपराधियों को भी समाज एवं परिवार की परिस्थितिया बदलकर सुधारा जा सकता है क्योकि अपराधजनित मानसिकता का बदलाव ही व्यक्ति में बदलाव को सुनिश्चित करता है। तीसरी श्रेणी में दक्ष एवं प्रोबेशनल अपराधी आते है जो किसी निश्चित अपराध को करने के लिये पूरी तरह ट्रेण्ड या प्रशिक्षित होते है। इस श्रेणी के अपराधियों का दिमाग बदलने के लिये उनके ट्रेनर उनके दिल और दिमाग को बदलने के लिये एक लम्बा अभियान चलाते है ताकि ऐसे व्यक्ति निर्धारित व्यक्तियों को एवं समाज को ऐन-केन प्रकारेण हर प्रकार से नुकसान पहुचाने के लिये आमादा हो जाते है चाहे उन्हे मानव बंब ही क्यो न बनना पड़े। चौथी और अन्तिम श्रेणी में सफेदपोश अपराधी आते है जिनको आम बोलचाल में सफेदपोस गुण्डा भी कहा जाता है या वाईटकोलन क्रिमीनल भी कहा जाता है। मजे की बात यह है कि इस तरह के अपराधियों को समाज अपराधी ही नहीं मानता है। साथ ही ऐसे अपराधी व्यक्ति समाज में पद, प्रतिष्ठा, सम्पति अधिकारो के केन्द्र में होने के कारण समाज का साधारण व्यक्ति इनके खिलाफ ठीक तरह से आवाज भी बुलंद नहीं कर पाता है परन्तु आम आदमी को यह मानसिक बदलाव करना पडेगा कि सफेदपोस अपराधियों के सजा से बच निकल जाने के कारण ही आदतन एवं प्रोबेशनल अपराधियों के हौसले बुलंद होते है। आज समाज में न्याय एवं दण्ड प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आदतन अपराधियों को एवं प्रशिक्षित अपराधियों को दण्डित करने के साथ-साथ सफेदपोस अपराधियों को भी कठोर दण्ड देते हुए न्याय प्रशासन का संचालन करना चाहिए नही तो समाज में यह धारणा हर समय बनी रहेगी कि ऊचे रसूक वाले जेल में नहीं जाएगा और जिसके कोई रसूकात नहीं है वो जेल में यू ही सड़ेगा। पैसा देकर छुटने एवं पैसे के बल पर बड़े से बड़े जुगाड़ को करने में ऐसे लोग सफल ना हो इसके लिये निर्णायक प्रयास होने चाहिए तभी अपराधजनित मानसिकता खत्म हो सकती है। समाज में नशा भी अपराधों को जन्म देने वाली स्थिति है इसमें भी बदलाव जरूरी है।

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