शुक्रवार, 15 अगस्त 2014

आजादी अभी अधूरी है और उड़ान बाकी है: व्यास

आजादी के 67 वर्ष बाद भी जब हम समीक्षा करते है तो पाते है कि जो हमें आजादी 15 अगस्त 1947 को हासिल हुई थी, वो केवल राजनैतिक आजादी थी और ऐसी आजादी भी हमें विभाजन एवं दंगे, उपद्रव, घृणा जैसे हालात की कीमत चुकाते हुए प्राप्त हुई थी। अंग्रेजों से तो देश को निश्चित रूप से आजादी मिल गई परन्तु अंगे्रजीयत से आज भी हमें मुक्ति नहीं मिली है। संयुक्त राष्ट्र संघ एवं उच्चतम न्यायालय में हम न तो हिन्दी को और न ही अन्य संवैधानिक भाषाओं को वो सम्मान और न ही वो हैसियत दिला पाये जिसकी ये भाषाएं हकदार है। आज भी तीन प्रतिशत लोगों की भाषा अंग्रेजी हमारी छाती पर मूंग दल रही है, पर हम अंग्रेजीयत के प्रभाव में अपनी अभिव्यक्ति को अपनी भाषा में न देकर अंग्रेजी में देने पर आमादा है क्योंकि हम लोगों को अहसास कराना चाहते है कि अभिजात्य वर्ग से है। सामन्तशाही भले ही समाप्त हो गई हो परन्तु आज के नौकरशाह एवं सत्ताधीश क्या उन सामन्तों से कम रोब गालीब करते है?
आज आर्थिक आजादी 80 प्रतिशत लोगों तक नहीं पहुंच पायी है। 22 करोड़ व्यक्ति देश में सभी मानवाधिकारों से वंचित है। इनके लिए शुद्ध पीने का पानी तक उपलब्ध नहीं है। खाद्य सुरक्षा कानून बना देने से क्या देश के वंचित वर्ग को वाकई खाद्य सुरक्षा मिल जायेगी? या केवल कानूनों के जंगल में ये कानून भी एक खरपतवार साबित होंगे। यूं तो देश में खाद्य अपमिश्रण कानून, औषधि नियंत्रण कानून, सौन्दर्य प्रसाधन कानून बन जाने के बावजूद भी देश में खाद्य वस्तुओं, दवाओं एवं सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री में जानलेवा मिलावट तक को हम भारत के गण नहीं रोक पाये। जहां तक तंत्र की बात है वह तो अपने सुरक्षा कवच को ओर मजबूत करने को आमादा है। देश का आम नागरिक तो द्रोपदी बना हुआ है जिसके चीरहरण के लिए कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका, काॅर्पोरेट मीडि़या एवं कथित एनजीओ तैयार बैठे है। है भारत के नागरिकों अब गोविन्द द्रोपदी का चीर बचाने के लिए स्वयं नहीं आयेंगे अब उन्हें खुद ही अपने अपमान का, अन्याय का, अत्याचार, मजबूरी का जन आन्दोलन के जरिये विरोध करना होगा। आज काॅर्पोरेट मीडि़या अपने पूंजीपती आँकाओं के कहने पर जन आन्दोलनों को कभी अमेरिका समर्थित या विदेशी पूंजी से संचालित बताने का भरसक प्रयास करेगा परन्तु आज के दिन आप संकल्प ले कि जब तक आप लोगों को आर्थिक, वास्तविक, राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व नागरिक आजादी हासिल नहीं हो जाती तब तक आप संघर्ष के रथ को थमने नहीं देंगे। आजादी के आन्दोलन के दौरान जिन मूल्यांे की बात कही गई थी आजादी के बाद जानबूझ कर उन मूल्यांे को श्रद्धाजंलि दे दी गई। पर हम भारत के गण चुपचाप देखते रहे। आज देश में नागरिकों को जातिवाद, साम्प्रदायिकता, क्षेत्रवाद व भाषावाद के नाम पर लड़वा जा रहा है। क्योंकि देश का सुविधाभोगी वर्ग नहीं चाहेगा कि लोगों का ध्यान बढ़ती हुई महंगाई, भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार एवं अन्यायपूर्ण व्यवस्था के कारणों पर जाये। इसलिए हम भारत के सभी नागरिकों को भारतीय संविधान की प्रस्थावना को मन से अंगीकार करते हुए आचरण से भी लोकतांत्रिक बनने का प्रयास करें। जीवन में जब तक व्यक्ति जवाबदेही एवं पारदर्शिता को आचरण का हिस्सा नहीं बनायेगा तब तक वो राज्य से भी जवाबदेही और पारदर्शिता की उम्मीद नहीं कर सकता।

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