आजादी के बाद हर बज़ट व्यवस्थाओं मे थार के मरूस्थल पर नियन्त्रण का निर्णय लिया।आज २लाख वर्ग किलो मीटर मे फैला थार हमे ललकारता है।दम है तो मुझे बांधो।लूणी नदी घाटी योजना को भी सही तरीके से लागू कर दिया जाता तो थार के लोगो ,वनस्पति, मवेशियों शायद सुकून मिल जाता।
५०० किलो मीटर लम्बी लूणी नदी के क्षैत्र मे केवल चरागाह विकसित करके हम वहां के जन जीवन मे एक सुकून पैदा कर पाते।
चीन इझराईल की तकनीक से भी हम मरूस्थल को बांध सकते है।पाकिस्थान सरकार का सहयोग भी ज़रूरी है।मरूस्थलीकरण को रोकने मे। क्यो कि मरूस्थल को रोकना आज एक अहम मुद्दा है, जहां का तापमान गर्मियों के दिनों में 60 डिग्री सेल्शियस तह रहता है और सर्दी के दिनों में 0 डिग्री से नीचे भी तापमान जाता है। मरूस्थल में मीलों दूर तक कई गांव नजर नहीं आते है। यहां के लोगों का जीवन बहुत विकट एवं विपरित परिस्थितियों से जुझने वाला है। मरूस्थल के लोगों का मुख्य व्यवसाय पशुपालन है। यहां का मुख्य पशु ऊंट, भेड, बकरी, गाय एवं बैल है। यहां की वनस्पति कीकर, टींट, फोकड, खेजडी, रोहिडा है। यहां के मुरूस्थल में सांप बिच्छु व अन्य जहरीले कीडे पाये जाना आम बात है। प्राकृतिक एवं मानवीय गतिविधियों ने इस क्षेत्र को मरूस्थल में तब्दील कर दिया है, जबकि कहा जाता है कि यहां पर समुद्र हुआ करता था, और सरस्वती नदी के अवशेष भी मौजूद है। इसी मरूस्थल में 20 प्रमुख खनिज एवं 9 अन्य खनिज निकाले जाने से जमीने खराब हो गई है एवं वनस्पति विलुप्त पर्याय हो गई है। 58 प्रतिशत राजस्थान में केवल रेत के टीले ही पाये जाते है। मुरूस्थल पर नियंत्रण करने के लिए पेडों की पट्टियां लगाना जरूरी है। दो पट्टियों के बीच में चरागाह को विकसित किया जाने से पशुधन को एवं वहां के जनजीवन को बचाया जाना संभव है। 5 टन प्रति हैक्टेयर जो भूमि का कटाव आज जारी है उसको रोकने के लिए केवल पेडों की दीवारनुमा पट्टी खडी कर के ही बढ़ते हुए मरूस्थल पर नियंत्रण कायम किया जा सकता है साथ ही पशुधन एवं जनजीवन को भी बचाया जा सकता है। आज तो मरूस्थल लोगों के लिए कुरूक्षेत्र के युद्ध की मैदान की तरह दिख रहा है और इस युद्ध में धर्म जीतेगा या न जीतेगा यह वक्त ही बतायेगा।
५०० किलो मीटर लम्बी लूणी नदी के क्षैत्र मे केवल चरागाह विकसित करके हम वहां के जन जीवन मे एक सुकून पैदा कर पाते।
चीन इझराईल की तकनीक से भी हम मरूस्थल को बांध सकते है।पाकिस्थान सरकार का सहयोग भी ज़रूरी है।मरूस्थलीकरण को रोकने मे। क्यो कि मरूस्थल को रोकना आज एक अहम मुद्दा है, जहां का तापमान गर्मियों के दिनों में 60 डिग्री सेल्शियस तह रहता है और सर्दी के दिनों में 0 डिग्री से नीचे भी तापमान जाता है। मरूस्थल में मीलों दूर तक कई गांव नजर नहीं आते है। यहां के लोगों का जीवन बहुत विकट एवं विपरित परिस्थितियों से जुझने वाला है। मरूस्थल के लोगों का मुख्य व्यवसाय पशुपालन है। यहां का मुख्य पशु ऊंट, भेड, बकरी, गाय एवं बैल है। यहां की वनस्पति कीकर, टींट, फोकड, खेजडी, रोहिडा है। यहां के मुरूस्थल में सांप बिच्छु व अन्य जहरीले कीडे पाये जाना आम बात है। प्राकृतिक एवं मानवीय गतिविधियों ने इस क्षेत्र को मरूस्थल में तब्दील कर दिया है, जबकि कहा जाता है कि यहां पर समुद्र हुआ करता था, और सरस्वती नदी के अवशेष भी मौजूद है। इसी मरूस्थल में 20 प्रमुख खनिज एवं 9 अन्य खनिज निकाले जाने से जमीने खराब हो गई है एवं वनस्पति विलुप्त पर्याय हो गई है। 58 प्रतिशत राजस्थान में केवल रेत के टीले ही पाये जाते है। मुरूस्थल पर नियंत्रण करने के लिए पेडों की पट्टियां लगाना जरूरी है। दो पट्टियों के बीच में चरागाह को विकसित किया जाने से पशुधन को एवं वहां के जनजीवन को बचाया जाना संभव है। 5 टन प्रति हैक्टेयर जो भूमि का कटाव आज जारी है उसको रोकने के लिए केवल पेडों की दीवारनुमा पट्टी खडी कर के ही बढ़ते हुए मरूस्थल पर नियंत्रण कायम किया जा सकता है साथ ही पशुधन एवं जनजीवन को भी बचाया जा सकता है। आज तो मरूस्थल लोगों के लिए कुरूक्षेत्र के युद्ध की मैदान की तरह दिख रहा है और इस युद्ध में धर्म जीतेगा या न जीतेगा यह वक्त ही बतायेगा।
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