आज विचार भी बंधुआ हो गए है।दलगत राजनीति इस कदर हावी है कि स्वतंत्र विचार ही दुर्लभ हो गए है।मिडिया भी जिसका पैसा उसकी पैरवी।आज कॉर्पोरेट मिडिया से कैसे उम्मीद कर सकते है वो कॉर्पोरेट के खिलाफ वास्तविक तथ्य भी सामने लायेगा।आजादी के आंदोलन में भी मिडिया सांप्रदायिक,उग्र,पूंजीपरस्त,अग्रेजो का हित पोशाक रहा है।आज की सरकार पूंजीवादी सरकार है।इससे कैसा उम्मीद करे की ये मजदूर,किसानों ,वंचित वर्ग में कानून व् नीतियां बनाएंगी ?
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