आज भारतीय समाज मे जातीय,संप्रदायवादी मानसिकता विकसित की जा रही है।पिछले 4 साल में हिन्दू मुस्लिमो में नफ़रत ओर अविश्वास का माहौल वोट के खातिर विकसित ही किया गया बल्कि पल्लवित पोषित भी किया गया जा रहा है।देश के अल्पसंख्यको पर सामान्य आचार संहिता के नाम पर बहुसंख्यक रीतिरिवाज,प्रथाओं,मान्यताओं को थोपने का प्रयास किया जा रहा है।
आज हिन्दूओ में भी दलित पिछड़ो ओर स्वर्ण वर्ग के बीच आरक्षण की आड़ में तनाव और अविश्वास का माहौल बढ़ा ही है।आदिवासियो में भी राजस्थान विशेष में भील गरासियों ओर मीणो में तनाव और उपद्रव तक का माहौल रहा था।सत्तारूढ़ ओर
विपक्ष दोनों इनके हितेषी बनकर आग में घी डालने का ही काम करते रहे। किसी ने
जिम्मेदाराना व्यवहार और संजीदा आचरण नही किया।आज जातिवादी,संप्रदायवादी
खरनाक दौर में पहुँच गई है।आज प्रेस तक जातीय सम्प्रदायवादी सोच चिंतन से ग्रसित है।कथित सामाजिक संगठन सामाजिक न होकर जातीय या सम्प्रदायवादी बनकर रह गए है।
शहीद भगतसिंह जी की विचारधारा तो विलुप्त ही हो गई है।आज जोड़ तोड़ की राजनीति को ही सभी पक्ष महत्व दे रहे है।शिक्षा के व्यवसायीकरण में आदमी को पैसा कमाने की महज़ मशीन बनाकर रख दिया है।सहिष्णुता समाप्त प्रायः ही हो गई है।
आज हिन्दूओ में भी दलित पिछड़ो ओर स्वर्ण वर्ग के बीच आरक्षण की आड़ में तनाव और अविश्वास का माहौल बढ़ा ही है।आदिवासियो में भी राजस्थान विशेष में भील गरासियों ओर मीणो में तनाव और उपद्रव तक का माहौल रहा था।सत्तारूढ़ ओर
विपक्ष दोनों इनके हितेषी बनकर आग में घी डालने का ही काम करते रहे। किसी ने
जिम्मेदाराना व्यवहार और संजीदा आचरण नही किया।आज जातिवादी,संप्रदायवादी
खरनाक दौर में पहुँच गई है।आज प्रेस तक जातीय सम्प्रदायवादी सोच चिंतन से ग्रसित है।कथित सामाजिक संगठन सामाजिक न होकर जातीय या सम्प्रदायवादी बनकर रह गए है।
शहीद भगतसिंह जी की विचारधारा तो विलुप्त ही हो गई है।आज जोड़ तोड़ की राजनीति को ही सभी पक्ष महत्व दे रहे है।शिक्षा के व्यवसायीकरण में आदमी को पैसा कमाने की महज़ मशीन बनाकर रख दिया है।सहिष्णुता समाप्त प्रायः ही हो गई है।
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