2014 से देश मे श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार चल रही है।अभी हाल ही में पांच राज्यो में विधानसभा चुनाव हुए।बीजेपी को मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में सत्ता से हाथ धोना पड़ा।विगत वर्षों हुए उप चुनावो में भी बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा।यूपी में गोरखपुर ,फूलपुर की हार ने बीजेपी नेतृत्व को हिला दिया अंदर तक।क्यो की गोरखपुर 1977 से बीजेपी का अभेद दुर्ग रहा जिसे बसपा सपा गठबंधन ने आसानी से भेद दिया।आज बीजेपी की सहयोगी पार्टियां चुनाव नजदीक आते ही अपने तेवर दिखाने लग गई है।आसाम तक मे बीजेपी अपनी ही नीतियों से परेशानी में आ गई है।दूसरी ओर गोरखालेण्ड क्षेत्र में भी बीजेपी अपनी ही हठ धर्मिता,अहंकारी नीति से तखलीफ़ में है।शिवसेना,तेलगूदेशम, एडीएमके,जैसी पार्टियों ने पहले ही किनारा कर लिया है।दूसरी ओर क्षेत्रीय पार्टियों ने स्थानीय स्तर पर समझोते कर के भी बीजेपी को कमजोर करना शुरू कर दिया है।यूपी,बिहार,महाराष्ट्र,हरियाणा,झारखंड,बंगाल,उड़ीसा,कर्नाटक,तमिलनाडु, केरल, सहित कई राज्यो में बीजेपी काफी नुकसान में रहेगी।गुजरात,एमपी,राजस्थान, पंजाब में भी बहुत कुछ खोयेगी ही।
आज हम समीक्षा करें तो पाएंगे कि किसान,मजदूर,दस्तकार,छात्र,मध्यम वर्ग तक नाखुश है। सरकारी नीतियों से।किसानों को फसल का लाभकारी मूल्य न मिलना, फसल बीमा के नाम पर ठगी,कर्जे से दबा किसान वर्ग चिंतित कर रहा है बीजेपी नेताओं को।भ्रस्टाचार आज कोई नया मुद्दा नही है।फिर भी बीजेपी नेताओं के ओर भ्रस्टाचार के रिस्तो पर बहस हो रही है।
बीजेपी संघ परिवार द्वारा अपने विरोधियों को राष्ट्रद्रोही कहना आम बात हो गई है।उग्र हिन्दूत्व की आड़ लेकर संघ परिवार देश समाज को हिन्दू मुस्लिम में बांट कर अपने वोट बैंक को मजबूत करना चाहेगी।पर अब पहले जैसे हालात नही है।स्वर्ण आरक्षण भी बीजेपी को ज्यादा फायदा नही दिला पायेगा।एसटीएससी कानून को कठोर कर के भी दलित वर्ग में सहानूभूति की लहर नही चला पा रही बीजेपी।
गो हत्या की आड़ में भीड़ की आड़ लेकर दलित,मुस्लिम समाज पर किये हमलों को लोग नही भूले है।लव जेहाद,3 तलाक ने भी वोटों के धुव्रीकरण को प्रभावित किया है।
आज बीजेपी विरोधी संगठित हो रहे है।और बीजेपी के पक्षधर बचाव की मुद्रा में।ये है 2019 के चुनाव का परिद्रश्य।लोगो की भावनाओ को समझे तो लग जायेगा कि बीजेपी का सत्ता में आना नामुमकिन सा हो गया है।
तीसरे मोर्चे की भी 200 सीटे तक आने का अनुमान लगा रहे विश्लेषक।
सोमवार, 21 जनवरी 2019
लोकतंत्र और संवैधानिक संस्थाओं पर संकट सन्निकट है-व्यास
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें