मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013

केवल कानून बना देने से अपराधी का अपराध चरित्र नही मिटेगा - व्यास


     आज हर समस्याओं के समाधान के लिये आज कानून बनाये जाते है परन्तु समाज की कई समस्याओं का समाधान कानून के माध्यम से संभव नहीं है जैसे समाज मे गिरते हुए नैतिक मूल्य इसके परिणामस्वरूप आज समाज में ईमान, इंसाफ, ईज्जत, विश्वास, भावनाएं इन सब मुद्दो पर समाज में कोई व्यक्ति गंभीर नहीं है। मुनाफाखोर अर्थव्यवस्था में आज समाज का प्रत्येक व्यक्ति घाटे का सौदा नहीं करना चाहता है चाहे घर-परिवार, जाति-समाज, धर्म व आध्यात्मिकता इन सभी क्षेत्रों में आदमी का दृष्टिकोण हो गया कि उसे वही काम करना चाहिए जिसमें फायदा हो। आज जो हालात है कई महिलाएं परित्यकता, तलाक के आधार पर नौकरिया प्राप्त करने के लिये अदालत में जाकर पति-पत्नि दुर्भि संधि के आधार पर तलाक या परित्यकता प्रमाण पत्र ले लेते है। नौकरी भी लग जाती है और पति-पत्नि पहले की तरह साथ भी रहते है। कथित तलाक के बाद संताने भी पैदा होती है। अब सवाल उठता है कि क्या नौकरी प्राप्त करने के लिये तलाक जैसे हथियार का इस्तेमाल किया जाना नैतिक है ? दूसरा उदाहरण दो से ज्यादा संताने होने पर चुनाव न लड़ने देने की बाध्यता के कारण प्रत्याक्षी अपनी जायज औलाद को भी अपनी औलाद मानने से इन्कार कर देता है या किसी भी तरीके से किसी के यहा गोद रखने का एक स्वांग भी करता है परन्तु कथित एनकेन प्रकारेण चुनाव लड़ने की मानसिकता ने नैतिक मूल्यों को रसातल में पहुचाया है। आज कानूनो का इस्तेमाल राजनैतिक दल अपने फायद के लिये तो कर लेते है परंतु जिस घोषणा के आधार पर यह दल अपना रजिस्ट्रेशन करवाते है ठीक उसी के विपरित आचरण करके अनैतिक आचरण भी करते है और गैर कानूनी कार्य भी करते है। कथित चुनाव आयोग इन दलो का पंजीयन तो करता है परंतु लोकप्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुसार की गयी घोषणा का उल्लंघन करने पर इन दलो के खिलाफ चुनाव आयोग पार्टी का रजिस्ट्रशन खारिज करने या निलंबित करने तक के लिये कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं करता। आज सभी राजनेताओं द्वारा जाति, धर्म, क्षेत्र, लिंग के आधार पर जो विद्वेष पैदा किया जा रहा है न केवल देश की एकता व अखण्डता के खिलाफ है बल्कि अनैतिक आचरण भी है और कानून के विरूद्ध भी आचरण है। भारतीय संविधान के अनुसार कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका एवं जनसंगठनों या आमजनता की जिम्मैदारी है कि वे केवल संविधान सम्मत विचार ही नहीं रखे आचरण भी करे। आज जो कानून बन रहे है वह पूरी तरह जनता को राहत देने वाले नहीं भी है और कई कानूनो से समाज में विद्वेष भी पैदा हो रहा है। हिन्दुस्तान के कई कानून तो आदमी को अनैतिक आचरण करने के लिए न केवल विवश करता है बल्कि उसे प्रोत्साहित भी करता है इसलिए दुनिया को अपराध मुक्त करने के लिए कानून को हथियार व ढ़ाल के रूप में इस्तेमाल न करें केवल औजार के रूप में इस्तेमाल करे ताकि समाज में आ रही चुनौतियों का आप बेहतरीन तरीेके से समाधान निकाल सके।

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