दुनिया में आज जो हालात है उन हालातो में समाज का वंचित वर्ग सबसे ज्यादा तकलीफ मे महसूस कर रहा है। उल्लेखनीय हे कि किसी भी जाति, धर्म, नस्ल, रंग के अंदर आज महिलाओं की हालत दूसरे दर्जे की ही है। सबसे ज्यादा विकसित राष्ट्र होने का दावा करने वाले अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों में भी महिलाअें को वोट के अधिकार हासिल करने के लिये लंबा संघर्ष करना पड़ा है क्योंकि पुरूष प्रधान व्यवस्था में आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक एवं सता के केन्द्रो पर पुरूष वर्ग का ऐनकेन प्रकारेण नियंत्रण है परन्तु भारतीय परिवेश में देखे तो ये उल्लेखनीय है कि सभी देवताओं के महिसासुर से हारने के बाद वे अपने आप को बहुत अपमानित एवं कष्ट में महसूस कर रहे थे ऐसे में सभी देवताओं ने अपनी शक्ति से माँ दुर्गा को अवतरित किया और देवताअें की सामूहिक शक्ति के परिणामस्वरूप एवं विवेक, तर्कसम्मत के कारण उनको ये यथार्थ निर्णय लेना पडा अर्थात मां दुर्गा सामुहिक शक्ति का प्रतीक है जिसने अपसंस्कृति के प्रतिक महिसासुर का मानमर्दन किया था परन्तु आज समाज में शक्तियों के केन्द्र बिखरे हुए है। आज महिलाएं अपनी गरिमा के लिये संघर्षरत है। 8 मार्च को पूरी दुनिया में अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है परंतु 100 वर्षो से लगातार महिलाओं के संघर्ष करने के बावजुद भी महिलाओ ंको उचित सम्मान एवं वो मानवीय हक भी नहीं मिले जिनकी वह हकदार थी। आज भी हिन्दुस्तान में महिलाओं को पार्लियामेंट एवं विधान सभाओं में अपने राजनैतिक प्रतिनिधित्व के लिये (33:) संघर्ष करना पड़ रहा है। ईमानदारी से कोई भी राजनैतिक दल भारत में महिलाओं को राजनीति में आरक्षण नहीं देना चाहता। महिलाओं के पक्ष में जितने भी कानून आज तक बन पाए वह भारतीय महिलाओं के सशक्त संघर्ष एवं मजबूत संकल्प का ही परिणाम है। महिलाआंे के विरूद्ध घरेलू हिंसा कानून हो या कार्यस्थल पर महिलाओं पर होने वाली यौन हिंसा, दहेज उत्पीडन निषेध कानून या अन्य सिविल या अपराधिक कानून सशक्त महिला आंदोलन का ही परिणाम है। आज भी महिलाओं पर ये इल्जाम लगाया जाता है कि वे फर्जी मुकदमे दर्ज करवाती है परंतु मै सामाजिक कार्यकर्ता होने के साथ-साथ 1988 से वकालात मे हू इसलिये मै अपने अनुभव से कह सकता हू पेशेवर लोग ही बडा चढाकर मामलो का ड्राफ्टींग करते है और कई ऐसे गवाहो को भी गवाहो की सूची मे जुडवा देते है जो पहले दिन से ही ज्ञात होता है कि वह पक्षद्रोही हो सकते है। जहा तक कानूनो के दुरूपयोग का सवाल है आयकर कानून, बिक्रीकर कानून, अन्य राजस्व कानूनो का उल्लंघन हुआ है और इसमे जितना भ्रष्टाचार हुआ है उतना तो महिलाओं के कल्याण के लिये बने हुए कानूनो से कोई नुकसान नहीं हुआ है और न ही महिलाओं ने 90 प्रतिशत मामलो में जानबुझकर गृहस्थी तोडने के लिये कानूनो का दुरूपयोग किया हो। अब वक्त आ गया कि हम पुरूष और महिलाएं पुन मिलकर यह निर्धारण करे कि पुरूष और महिलाओं के सामाजिक रिश्ते क्या हो ? आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, नागरिक अधिकार क्षेत्र में महिलाओं को कागजी पतिनिधित्व के बजाय वास्तविक प्रतिनिधित्व कैसे मिले। आज वक्त आ गया कि न्याय पूर्ण सामाजिक व्यवस्था बनाने के लिये लंबे, कठिन संघर्ष को चलाने की आवश्यकता है। इसके लिये हम सतत प्रयास करे।
मंगलवार, 26 फ़रवरी 2013
महिलाओं की आधी आबादी फिर भी महिलाएं हक के लिए मोहताज क्यों ? व्यास
दुनिया में आज जो हालात है उन हालातो में समाज का वंचित वर्ग सबसे ज्यादा तकलीफ मे महसूस कर रहा है। उल्लेखनीय हे कि किसी भी जाति, धर्म, नस्ल, रंग के अंदर आज महिलाओं की हालत दूसरे दर्जे की ही है। सबसे ज्यादा विकसित राष्ट्र होने का दावा करने वाले अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों में भी महिलाअें को वोट के अधिकार हासिल करने के लिये लंबा संघर्ष करना पड़ा है क्योंकि पुरूष प्रधान व्यवस्था में आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक एवं सता के केन्द्रो पर पुरूष वर्ग का ऐनकेन प्रकारेण नियंत्रण है परन्तु भारतीय परिवेश में देखे तो ये उल्लेखनीय है कि सभी देवताओं के महिसासुर से हारने के बाद वे अपने आप को बहुत अपमानित एवं कष्ट में महसूस कर रहे थे ऐसे में सभी देवताओं ने अपनी शक्ति से माँ दुर्गा को अवतरित किया और देवताअें की सामूहिक शक्ति के परिणामस्वरूप एवं विवेक, तर्कसम्मत के कारण उनको ये यथार्थ निर्णय लेना पडा अर्थात मां दुर्गा सामुहिक शक्ति का प्रतीक है जिसने अपसंस्कृति के प्रतिक महिसासुर का मानमर्दन किया था परन्तु आज समाज में शक्तियों के केन्द्र बिखरे हुए है। आज महिलाएं अपनी गरिमा के लिये संघर्षरत है। 8 मार्च को पूरी दुनिया में अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है परंतु 100 वर्षो से लगातार महिलाओं के संघर्ष करने के बावजुद भी महिलाओ ंको उचित सम्मान एवं वो मानवीय हक भी नहीं मिले जिनकी वह हकदार थी। आज भी हिन्दुस्तान में महिलाओं को पार्लियामेंट एवं विधान सभाओं में अपने राजनैतिक प्रतिनिधित्व के लिये (33:) संघर्ष करना पड़ रहा है। ईमानदारी से कोई भी राजनैतिक दल भारत में महिलाओं को राजनीति में आरक्षण नहीं देना चाहता। महिलाओं के पक्ष में जितने भी कानून आज तक बन पाए वह भारतीय महिलाओं के सशक्त संघर्ष एवं मजबूत संकल्प का ही परिणाम है। महिलाआंे के विरूद्ध घरेलू हिंसा कानून हो या कार्यस्थल पर महिलाओं पर होने वाली यौन हिंसा, दहेज उत्पीडन निषेध कानून या अन्य सिविल या अपराधिक कानून सशक्त महिला आंदोलन का ही परिणाम है। आज भी महिलाओं पर ये इल्जाम लगाया जाता है कि वे फर्जी मुकदमे दर्ज करवाती है परंतु मै सामाजिक कार्यकर्ता होने के साथ-साथ 1988 से वकालात मे हू इसलिये मै अपने अनुभव से कह सकता हू पेशेवर लोग ही बडा चढाकर मामलो का ड्राफ्टींग करते है और कई ऐसे गवाहो को भी गवाहो की सूची मे जुडवा देते है जो पहले दिन से ही ज्ञात होता है कि वह पक्षद्रोही हो सकते है। जहा तक कानूनो के दुरूपयोग का सवाल है आयकर कानून, बिक्रीकर कानून, अन्य राजस्व कानूनो का उल्लंघन हुआ है और इसमे जितना भ्रष्टाचार हुआ है उतना तो महिलाओं के कल्याण के लिये बने हुए कानूनो से कोई नुकसान नहीं हुआ है और न ही महिलाओं ने 90 प्रतिशत मामलो में जानबुझकर गृहस्थी तोडने के लिये कानूनो का दुरूपयोग किया हो। अब वक्त आ गया कि हम पुरूष और महिलाएं पुन मिलकर यह निर्धारण करे कि पुरूष और महिलाओं के सामाजिक रिश्ते क्या हो ? आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, नागरिक अधिकार क्षेत्र में महिलाओं को कागजी पतिनिधित्व के बजाय वास्तविक प्रतिनिधित्व कैसे मिले। आज वक्त आ गया कि न्याय पूर्ण सामाजिक व्यवस्था बनाने के लिये लंबे, कठिन संघर्ष को चलाने की आवश्यकता है। इसके लिये हम सतत प्रयास करे।
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