15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रेजी शासन की दासता से मुक्त हुआ था। आजादी के आन्दोलन से पूर्व स्वतंत्रता सैनानियों का एक मात्र लक्ष्य था कि भारत को अंग्रेजी हितों की दासता से मुक्त कराकर स्वराज्य कायम करना। इसके लिए शहीद-ए-आजम भगतसिंह एवं उन्हीं के पात के गर्म दल के नेता एनकेन प्रकारेण देश को न केवल अंग्रेजों से आजादी दिलाना चाहते थे, बल्कि सही मायने में देश को आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व नागरिक आजादी भी दिलाने चाहते थे। इसके विपरित विचारधारा रखने वाले महात्मा गांधी एवं उनके अनुयायी भी देश को रामराज्य की कल्पना के आधार पर देश को खड़ा करने का सपना देखते थे।
कहा तो तय था चीराग हर घर-घर के लिए,
आज चीराग नहीं मयस्सर पूरे शहर के लिए,
ठीक यह उक्ति आजाद भारत में सही साबित हुई। केवल भारत के नागरिकों को राजनीतिक आजादी हासिल हुई थी, परन्तु सामाजिक एवं राजनीतिक ढांचा हमें आज भी आजादी महसूस नहीं करने देता। डॉ. राममनोहर लोहिया एवं जयप्रकाश नारायण आजाद भारत के वो राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने देश के आम आदमी को न केवल सामाजिक न्याय दिलाने की लडाई शुरू की थी, बल्कि देश के आम आदमी को मुद्दों के आधार पर राजनीति करना सिखाया। 1967 में डॉ. लोहिया के नेतृत्व में गैर कांग्रेसी सरकारों का गठन व 1975 की इमरजेन्सी के बाद श्री जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में इंदिरा गांधी की तानाशाही से मुक्ति दिलाने के बाद जनता पार्टी का उदय 1988 के बाद श्री विश्वनाथ प्रतापसिंह के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के विरूद्ध राजीव गांधी की 410 सीटों वाली सरकार को उखाड़ फैकने का श्रेय श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह को जाता है। श्री विश्वनाथ प्रतापसिंह ने रक्षा सौदों में दलाली जैसे मुद्धों को जनआन्दोलन का मुद्धा बनाया और आम आदमी को उदवेलित किया। जिसके परिणाम स्वरूप राजीव गांधी सरकार का पतन हुआ।
अन्ना हजारे के नेतृत्व में 2011 में जनलोकपाल बिल को लेकर जो आन्दोलन हुआ। इस आन्दोलन को राजनीतिक दलों ने एवं नेताओं ने सिविल सोसायटी के लोगों के नाजायज हस्तक्षेप के रूप में लिया। सोसायटी के नेताओं ने बार-बार अन्ना हजारे, अरविन्द केजरीवाल व बाबा रामदेव को लल्कारा कि हम निर्वाचित प्रतिनिधि है, हमारे मामले में बेजाहस्तक्षेप संविधान विरूद्ध होगा। जन लोकपाल कानून बनाना है तो चुनाव लड़ के विधायका में आओं। अरविन्द केजरीवाल व साथियों ने इस चुनौति को स्वीकार किया और उन्होने माना कि बिना राजनीति में उतरे सरकारे तो बदली जा सकती है पर समाज में आमूलचूल परिवर्तन संभव नहीं है। आम आदमी पार्टी ने राजनीति को सामाजिक परिवर्तन के औजार के रूप में इस्तेमाल करने का निर्णय लिया जिसके परिणाम स्वरूप पिछले एक साल में आम आदमी के हक में एवं उसकी सुरक्षा के लिए जो आन्दोलन हुए उसके परिणाम स्वरूप आज दिल्ली में सरकार आम आदमी की बनी है बल्कि अब पूरे हिन्दुस्तान की राजनीति का एजेन्डा आम आदमी पार्टी तय कर रही है। आम आदमी के हित में जो जन आन्दोलन चला महंगाई, भ्रष्टाचार, भाई-भतिजावाद, सरकारी साधनों का अपव्यय एवं दुरविनियोग जैसे मामले रहे आज पूरे हिन्दुस्तान में सादगी एवं पारदर्शिता जवाबदेही ने जनता के मन को न केवल उदवेलित किया है बल्कि आम आदमी के हितों की सुरक्षा करने वाली सरकार की कल्पना भी देश में वो कर रहे है। इस प्रकार केवल जन आन्दोलन से ही आम आदमी के हालात में आमूलचूल परिवर्तन संभव है।
कहा तो तय था चीराग हर घर-घर के लिए,
आज चीराग नहीं मयस्सर पूरे शहर के लिए,
ठीक यह उक्ति आजाद भारत में सही साबित हुई। केवल भारत के नागरिकों को राजनीतिक आजादी हासिल हुई थी, परन्तु सामाजिक एवं राजनीतिक ढांचा हमें आज भी आजादी महसूस नहीं करने देता। डॉ. राममनोहर लोहिया एवं जयप्रकाश नारायण आजाद भारत के वो राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने देश के आम आदमी को न केवल सामाजिक न्याय दिलाने की लडाई शुरू की थी, बल्कि देश के आम आदमी को मुद्दों के आधार पर राजनीति करना सिखाया। 1967 में डॉ. लोहिया के नेतृत्व में गैर कांग्रेसी सरकारों का गठन व 1975 की इमरजेन्सी के बाद श्री जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में इंदिरा गांधी की तानाशाही से मुक्ति दिलाने के बाद जनता पार्टी का उदय 1988 के बाद श्री विश्वनाथ प्रतापसिंह के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के विरूद्ध राजीव गांधी की 410 सीटों वाली सरकार को उखाड़ फैकने का श्रेय श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह को जाता है। श्री विश्वनाथ प्रतापसिंह ने रक्षा सौदों में दलाली जैसे मुद्धों को जनआन्दोलन का मुद्धा बनाया और आम आदमी को उदवेलित किया। जिसके परिणाम स्वरूप राजीव गांधी सरकार का पतन हुआ।
अन्ना हजारे के नेतृत्व में 2011 में जनलोकपाल बिल को लेकर जो आन्दोलन हुआ। इस आन्दोलन को राजनीतिक दलों ने एवं नेताओं ने सिविल सोसायटी के लोगों के नाजायज हस्तक्षेप के रूप में लिया। सोसायटी के नेताओं ने बार-बार अन्ना हजारे, अरविन्द केजरीवाल व बाबा रामदेव को लल्कारा कि हम निर्वाचित प्रतिनिधि है, हमारे मामले में बेजाहस्तक्षेप संविधान विरूद्ध होगा। जन लोकपाल कानून बनाना है तो चुनाव लड़ के विधायका में आओं। अरविन्द केजरीवाल व साथियों ने इस चुनौति को स्वीकार किया और उन्होने माना कि बिना राजनीति में उतरे सरकारे तो बदली जा सकती है पर समाज में आमूलचूल परिवर्तन संभव नहीं है। आम आदमी पार्टी ने राजनीति को सामाजिक परिवर्तन के औजार के रूप में इस्तेमाल करने का निर्णय लिया जिसके परिणाम स्वरूप पिछले एक साल में आम आदमी के हक में एवं उसकी सुरक्षा के लिए जो आन्दोलन हुए उसके परिणाम स्वरूप आज दिल्ली में सरकार आम आदमी की बनी है बल्कि अब पूरे हिन्दुस्तान की राजनीति का एजेन्डा आम आदमी पार्टी तय कर रही है। आम आदमी के हित में जो जन आन्दोलन चला महंगाई, भ्रष्टाचार, भाई-भतिजावाद, सरकारी साधनों का अपव्यय एवं दुरविनियोग जैसे मामले रहे आज पूरे हिन्दुस्तान में सादगी एवं पारदर्शिता जवाबदेही ने जनता के मन को न केवल उदवेलित किया है बल्कि आम आदमी के हितों की सुरक्षा करने वाली सरकार की कल्पना भी देश में वो कर रहे है। इस प्रकार केवल जन आन्दोलन से ही आम आदमी के हालात में आमूलचूल परिवर्तन संभव है।
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