देशभर में 12 अप्रेल 2014 से 12 मई 2014 तक लोकसभा के एवं तीन राज्यों के विधानसभा के चुनाव होना निश्चित हुआ है। देश का 81 करोड़ से ज्यादा मतदाता आगामी चुनाव में मतदान करेगा। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि देश का 10 करोड़ से ज्यादा मतदाता वो है जो पहली बार मतदान करेगा। उसके मन में उठ रहे ज्यार भाटे को समझना प्रत्येक राजनीतिक दल एवं नेता के लिए चुनौतिपूर्ण कार्य है। चैखंभे राज की परिकल्पना रखने वाले डाॅ. राममनोहर लोहिया जी ने आजाद भारत में चैखंभा राज की मजबूती की कल्पना की थी। भारतीय लोकतंत्र में विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका एवं स्वतंत्र निर्भिक पत्रकारिता एवं प्रभावी जनसमूह की भी कल्पना की गई है। परन्तु आज विधायिका द्वारा बनाये गये कानून या तो बेअसर हो रहे है या लागू करने वाली एंजेसिया कानूनों को लागू करते समय अपनी इच्छा व इनिच्छा को ध्यान में रखके फैसले करती है। जिसके कारण जिन उद्देश्यों से कानून बनाये गये वो कानून उन उद्देश्यों को प्राप्ति नही कर पाता जिसके लिए उन्हे बनाया गया। आज भी कई लोकहित के कानून ठीक तरह से लागू नहीं हो पा रहे है। या जिन एंजेसियों को कानून लागू करने की जिम्मेदारी दी गई है वह सुविधा एवं असुविधा के आधार पर या व्यक्तिगत मान्यताओं से प्रभावी होकर कानूनों को निष्प्रभावी बना रहे है। कार्यपालिका या सरकार केवल वोट बैंक को कैसे लामबंद किया जा सकता है इसकों ध्यान में रखकर कानूनों का निर्माण एवं फैसले किये जा रहे है। सस्ती लोकप्रियता के चक्कर में सरकारे वो निर्णय भी कर रही है जो विकास के बजाय विनाश के बीज तैयार कर रहे है। न्यायपालिका लोगों को न्याय नहीं दे रही है केवल निर्णय दे रही है। वो प्रत्येक निर्णय जरूरी नहीं है कि न्यायपूर्ण हो।
आज की आवश्यकता यह है कि निर्णय न्यायपूर्ण हो और कानूनों की सही व्याख्या करते हो। स्वतंत्र एवं निष्पक्ष पत्रकारिता की उम्मीद आजादी के पहले की गई थी। परन्तु आज हिन्दुस्तान का मीडिया 81 हजार करोड़ का एक व्यापार बन कर रह गया है जिसमें हर निवेशक केवल आर्थिक लाभ ही ढ़ूंढता है। पत्रकारिता से संवेदनशीलता समाप्त होती जा रही है और नकारात्मक एवं पीत पत्रकारिता प्रभावी होती जा रही है। आज पेड न्यूज का व्यापार भी तेजी से फलता फूलता जा रहा है। भारतीय लोकतंत्र में पत्रकारिता काॅर्पोरेट इण्डिया का पेरोकार होती जा रहा है। जबकि उसे असली भारत के प्रति जवाबदेह, पारदर्शी होना चाहिए। आज आवश्यकता है समाज के शिक्षित और प्रशिक्षित जवाबदेह जनसमूह राजनीति, समाज व्यवस्था एवं सामाजिक ताने-बाने पर अपना नियंत्रण स्थापित करें अन्यथा देश में क्रांति हो या ना हो अराजकता तो हो ही सकती है।
जब तक समाज में नीति, नेता व नियत ठीक नहीं होगी तब तक आम आदमी के जीवन में कोई सूर्योदय नहीं हो पायेगा। आगामी चुनाव निश्चित रूप से नीति एवं नेता की अग्नि परीक्षा होगी कि वह जनहित में काम करते है या स्वहित में काम करते है।
आज की आवश्यकता यह है कि निर्णय न्यायपूर्ण हो और कानूनों की सही व्याख्या करते हो। स्वतंत्र एवं निष्पक्ष पत्रकारिता की उम्मीद आजादी के पहले की गई थी। परन्तु आज हिन्दुस्तान का मीडिया 81 हजार करोड़ का एक व्यापार बन कर रह गया है जिसमें हर निवेशक केवल आर्थिक लाभ ही ढ़ूंढता है। पत्रकारिता से संवेदनशीलता समाप्त होती जा रही है और नकारात्मक एवं पीत पत्रकारिता प्रभावी होती जा रही है। आज पेड न्यूज का व्यापार भी तेजी से फलता फूलता जा रहा है। भारतीय लोकतंत्र में पत्रकारिता काॅर्पोरेट इण्डिया का पेरोकार होती जा रहा है। जबकि उसे असली भारत के प्रति जवाबदेह, पारदर्शी होना चाहिए। आज आवश्यकता है समाज के शिक्षित और प्रशिक्षित जवाबदेह जनसमूह राजनीति, समाज व्यवस्था एवं सामाजिक ताने-बाने पर अपना नियंत्रण स्थापित करें अन्यथा देश में क्रांति हो या ना हो अराजकता तो हो ही सकती है।
जब तक समाज में नीति, नेता व नियत ठीक नहीं होगी तब तक आम आदमी के जीवन में कोई सूर्योदय नहीं हो पायेगा। आगामी चुनाव निश्चित रूप से नीति एवं नेता की अग्नि परीक्षा होगी कि वह जनहित में काम करते है या स्वहित में काम करते है।
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